Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 386
________________ भगवान् महावीर ४२० शुद्ध-सत्य एक ऐसा रसायन है कि जिसे मनुष्य जाति नहीं पचा सकती। जिस प्रकार विजली का तेज प्रकाश तीक्ष्ण दृष्टि वाले मनुष्य की आँखों में भी चकाचौंधी पैदा करता है उसी प्रकार शुद्ध-सत्य का उपदेश लौकिक मनुष्य की दृष्टि को भी चौंधिया देता है। शुद्ध-सत्य की दृष्टि में पुण्य और पाप की तह नहीं ठहरती । उसके सामने सारासार का विचार नहीं ठहरता, उसकी दृष्टि मे जाति और अजाति का कोई विचार नहीं । उसके सम्मुख एक मात्र स्वास्थ्य-सिद्धवैद्यस्वास्थ्य ही टिकारह सकता है। निर्मल सत्य यद्यपि पिशाच के समान रुक्ष और भयकर मालूम होता है तथापि शांति की सुन्दर तरंगिणी का मूल उद्गम-स्थान वही है । विकास की पराकाष्ठा पर पहुँचनेवाली आत्माए उसी की खोज में अपनी सब शक्तियों को लगा देती हैं। ससार के सभी महापुरुषो ने उसको खोजने का प्रयत्न किया है पर अनिवचनीय और अज्ञेय होने के कारण उसे उसके वास्तविक रूप में कोई भी कहने में समर्थ नहीं हुआ। ___ मनुष्य, जन्म से ही कृत्रिम सत्यो के संसर्ग में रहता है । इसी कारण उसके पास निर्मल सत्य का उपदेश नहीं पहुँच सकता। इसी एक कारण से वह अनन्त काल से छिपा हुआ है और भविष्य में भी छिपा रहेगा, पर वही सबका अन्तिम ध्येय है इस कारण तमाम लोग उसकी उपासना करते हैं। सांसारिक व्यवहार में निपुणता प्राप्त करने के लिये जिस प्रकार प्रारम्भ में कृत्रिम साधन और कृत्रिम व्यवहारों का उपयोग किया जाता है उसी प्रकार इस परम सत्य को प्राप्त करने के लिये भी कृत्रिम सत्य और कल्पित व्यवहारों की

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