Book Title: Bhagavana Mahavira
Author(s): Chandraraj Bhandari
Publisher: Mahavir Granth Prakashan Bhanpura

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Page 404
________________ भगवान् महावीर ४४४ तो उससे कितना उपकार हो सकता है ? यदि इसी पैसे से हम हमारे बच्चों के लिए विद्यालय, बीमारों के लिए औषधालय, और अनाथों के लिए भोजन-गृह खुलवावें तो कितना बड़ा पुण्य और लाभ हो सकता है। जो पैसा जड़मूर्तियों के लिए बरबाद हो रहा है वही यदि सचेतन प्राणियो के लिए व्यय किया जाय तो कितना लाभ हो सकता है। यदि हम चाहते हैं कि भगवान महावीर के सिद्धान्तो का घर २ प्रचार हो यदि हम चाहते हैं कि हम सच्चे जैनधर्म के अनुयायी बनकर अपनी आत्मिक उन्नति करें, यदि हम चाहते हैं कि संसार हमें जीवित जातियों में गिने और हमारी इज्जत करे, और यदि हम इहलौकिक शान्ति के साथ परलौकिक सुख भी प्राप्त करना चाहते हैं तो इस दुराग्रह और हठवादिता को छोड़कर महावीर के सच्चे अनुयायी बनें। ___ जबतक हमारे हृदय मे स्वार्थ, घृणा, राग, द्वेष, और वन्धुविद्रोह के स्थान पर परमार्थ, प्रेम, बन्धुत्व और सहानुभूति की भावनाएँ उदित न होंगी, जबतक हम जड़ के लिये चेतन का और छिलके के लिए मीगी का अपमान करते रहेंगे तबतक न जैनधर्म का, न जैनजाति का और न हमारा ही लौकिक और 'परलौकिक हित हो सकता है। जिस समय जातियों को पतनावस्था का आरम्भ होता है उस समय वे अपने महात्माओ के बतलाए हुए मार्ग को भूल जाती हैं वे धर्म की असलियत को छोड़ कर नकलियत पीछे लड़ने लग जाती है। और इस प्रकार अपने संगठन को बिखेर कर तीन तेरह हो जाती है। जैनजाति का अधःपात अपनी

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