Book Title: Bhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Bhikhabhai Kothari

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Page 10
________________ [ २ ] विषय का वास्तविक वर्णन भगवती सूत्र के पन्द्रहवें छातक में है। उसका मार निम्न है : जिस समय भगवान् महावीर मेंढ़िक ग्राम के शाल कोप्ट उद्यान में पधारे, उस समय उनके शरीर में तेजो लेश्या की ऊष्णता से उत्पन्न पित्त-ज्वर का जोर था, रक्त प्रतिसार हो रहा था । रोग ने भयंकर रूप धारण किया हुआ था । ऐसी स्थिति को देख कर परमनावलम्बी कहने लगे कि भगवान् महावीर की छः मास की छद्यस्थ अवस्था में ही मृत्यु हो जायेगी । भगवान् का परम धनुरागी मुनि सिंह को, जो कि मालुका वन में तपस्या कर रहा था, जब इम लोक चर्चा का पता चला तो वह बहुत क्षुब्ध हुप्रा श्रीर अपने मन में इस बात की कल्पना करके कि कहीं परमतावलम्बियों का कथन सच न हो जाये, रूदन करने लगा । भगवान् ने तत्काल मुनि सिंह को बुला कर कहा-वत्स सिंह ! तू दुःखी मत हो, मेरी मृत्यु छ महीने में नहीं होगी । में १६ वर्ष तक तीर्थङ्कर की अवस्था मे जीवित रहूँगा । तथापि, यदि मेरे इस रोग से तुझे दुःख होता है तो एक काम कर । इस मेंढक ग्राम में गायापति की पत्नी रेवती रहती है। उसके वहां चला जा । उसने मेरे निमित्त जो प्रोषध बना कर तैयार रती है, उसे नहीं लाना । केवल उसके वहाँ रखो पुरानो प्रोषध ले पाना । मुनि सिंह भगवान् की प्राज्ञा पाकर मानन्दित होता हुधा रेवती के घर गया प्रौर प्रौषध ले प्राया । प्रौषध सेवन से भगवान् का रोग शांत हो गया । 1

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