Book Title: Bhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Bhikhabhai Kothari

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Page 43
________________ [१५] पना है 'चउ पत्तिया भाजी' मोर बिजोरा' ही उपयोगी है। प्रतः रेवती श्राविका के घर में जो 'कुक्कुर मांसक' पा बह बिजोरा-पाक के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हो सकता । यथामा . -- - -मारिपरे बाबा विनिमणिपालो पनि यि भावित बालविवाह माना टाईपाहराहिति निरल्यस्यात् पतगं मोएति पाप पोपिने ति सिल्के मरिक्त सत् तस्मावतारपतीत्यर्षः । (प्रा० श्री प्रमयदेवमूरि कृत भगवती टीका १० ६६१) (प्रा० श्री दानशेम्बर मूरि कृत भ० टीका) प्रागय यह है कि 'बिजोग पाक' को ही 'कुक्कुटमासक' की संज्ञा मिली है और यही (विजीरा पाक ही) रेवती माविका के वहां तैयार था। (११) मंसए 'मंमए' गन्द बिजौरा से निप्पन्न, पुलिया द्रस्य का घोतक है। इमका संस्कृत पर्याय 'मासक' होता है। मांस मामक और उसके नद्भव गब्दों का प्रर्ष इस प्रकार है। मांस (नपुमक लिग) गुदा, फलगर्म, फांक मांसक ( पुस्निग ) पाक, गुदा मांस ( नमकनिम ) मांस, गर्भ मांस फला (स्थी निम) जटामांसी भूत जटा, बालम वनस्पति । -भाव प्रकाश निषष्ट, कपुरादि वर्ष श्लो. ८६]

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