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में पड़ जायेगा तथा बड़े से बड़ा न्यायालय भी इस पर निर्णय देता हुआ 'किंकर्तव्यविमूढ़' हो जायगा क्योंकि स्थूल बुद्धि वाला तो व्यक्ति तत्काल इस का अर्थ 'ब्राह्मण, कृष्ण, कामदेव व विष्णु को पीसकर इत्यादि ही करेगा। परन्तु जीव-विज्ञान व निघण्टु प्रादि शास्त्रों का प्राधार लेकर इसका वास्तविक अर्थ किया जा सकता है ।
इस प्रकार हमारी व्याख्या के प्रकाश में यह निःसंकोच कहा जा सकता कि भगवान महावीर ने प्रौषधि - स्वरूप मांसाहार का प्रयोग नही किया। उन्होंने बिजौरा पाक का सेवन किया था जिससे उनका रोगदाह शांत हुआ ।
यो विश्व वेद विसं जनम बलनिषे अंगिन पारवृश्वा । पोपट दि वचनमपमं निध्य संकं यदीयम् ॥ सं बड़े साधुबन्धं सकल गरणनिधि ध्वस्त बोबहिषं त । मुज्यं वा वर्द्धमार्ग शतवसनिलवं केशवं वा शिवं वा ॥ ( कलिकाल सर्वज्ञ प्राचार्य श्री हेमचन्द्र सूरि )
।। जयउ जिविंद बर सासबथः ॥
(समाप्त)