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[३८) है। कोई पंडितंमन्य भाषा शास्त्री प्रमित तथा त्रुटिपूर्ण पर्यन कर बैठे, ऐसी सम्भावना की ही पावृत्ति रोकने के लिये यहां स्पष्टतः पुल्मिन का प्रयोग किया गया है। इस पर भी कोई यहां इस शब्द का प्रर्ष मांम से लगाये तो इसको मनमानी ही कहा जायगा । तथ्य यह है कि पुल्लिग होने के कारण यहां 'मॉम' का अर्थ मांस नहीं, बल्कि 'पाक' है । भगवती सूत्र के प्राचीन चूर्णीकार व टीकाकारों ने भी 'कुक्कुट मांसक बीज पुरकं फटाह' लिखकर 'मांस' का पर्ष 'पाक' होने की पुष्टि की है।
अन्याय तीसरा पिछले दो अध्यायों में हमने काल परिस्थिति, प्रर्थ पद्धति नया प्रौषध विज्ञान को प्राधार मान कर विवादास्पद पाठ की विशाद ग्याल्या की है। हम यहां स्पष्ट कर देना चाहते है यदि इन विचार बिन्दुमों की स्थापना किये बिना हम किसी पाठ का पर्थ लगा ले तो उस में प्रशुद्धि रह जाने की सम्भावना है। ऐसी ही पशुद्धि भगक्ती सूत्र में उल्लिखित भगवान महावीर द्वारा रुग्णावस्था में प्रौषध-मिक्षा सम्बन्धित पाठ का प्रपं करते समय हो गई है। हम पाठ पोर उसका ठीक पर्ष नीचे दे रहे हैं :___सत्य रेल्ती माहापालिए मम हाए दुवे कनोयसरीरा , तेहिं को अट्ठो । मलि से भन्ने परिष मन्सार नए महासए उपाइराहि संभो ।