Book Title: Bhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Bhikhabhai Kothari

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Page 26
________________ [ १६ ] दूसरा अध्याय हमारे सम्बन्धित विषय का मूल पाठ इस प्रकार है । "तत्थवं हे वइबीए मम भट्ठाए दुवे कवोय- सरीरा उबक्खड़िया तेहिं नो अट्ठो । भत्थि से अन्ने पारियासिए मज्जारकड़ कुक्कुड़ मंसए तमाहराहि एएवं भट्ठो ।" (श्री भगवती सूत्र शतक - १५) इस पाठ के विचारणीय शब्द ये हैं: - ( १ ) दुवे (२) कवोय ( ३ ) सरीरा ( ४ ) उवक्खड़िया ( ५ ) नो भट्ठो (६) भन्ने (७) पारियासिए (८) मज्जार (E) कड़ए (१०) कुक्कुड़ (११) मंसए । ( १ ) दुवे यह शब्द 'कवोय' की ही नहीं किन्तु 'कवोय सरीरा' की भी संख्या बताता है । प्रतः इसका अर्थ दो कवोय नहीं बल्कि कवोय के दो मुरब्बे है । यदि कवोय का अर्थ पक्षी विशेष से लिया जाय तो यहाँ दुवे तथा सरीरा शब्दों में समन्वय नहीं हो सकता क्यों कि पूरा कबूतर नहीं पकाया जाता मोर यदि अंगोपांग अलग लग करके पकाया जाय तो दो सरीर ऐसी संख्या नहीं रहती । म्रर्थात् दुवे भौर सरीरा इन दोनों शब्दों में एक शब्द निरर्थक हो जाता है । यदि कवोय का अर्थ किसी वनस्पति विशेष से लिया जाय तो यहां दुवे भौर सरीरा इन दोनों का ठीक समन्वय हो जाता है । कवोय फल का मुरब्बा बना हुआ हो उसके दो सम्पूर्ण फलों से 'दो' संख्या का बोध हो जाता है, एवं कवोय फल के मुरब्बे के लिये 'दुवे कवोय सरीरा' प्रदि

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