Book Title: Bhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Bhikhabhai Kothari

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Page 37
________________ [ २९ ] मार्जार = बिडाल । मार्जारी, मार्जारिका, मार्जारांष मुख्या = कस्तूरी । मार्जारगन्धा, मार्जार गन्धिका एक प्रकार हरिण 1 - [ श्री जैन सत्य प्रकाश व० ४ ० ७ ० ४३ ] उपरोक्त शब्द भौर इनके अर्थ से 'मार्जार की वनस्पति वर्ग में व्यापकता का पूर्ण परिचय मिल जाता है । अब यदि भगवान् महावीर के दाहरोग के विषय में विचार किया जाय तो यह स्वीकार करना होगा कि इस में बिडाल की तो कोई उपयोगिता ही नहीं है। इसके विपरीत मार्जार वनस्पति खटवॉश या तेल लाभदायक है । इस प्रकार उक्त रोग पर मार्जार वनस्पति खटांवश या तेल की भावना बाली प्रौषधि ही उपचार स्वरुप दी गई थी। क्योंकि दाह रोगों में खटाई प्रादि उपयोगी है। रोग में मार्जार नामक वायु विकार विद्यमान था । इस विकार की शांति के लिये जो संस्कार दिया जाय वह 'मर्जार कृत' कहलाता है, इस प्रकार यहां मार्जार का अर्थ वायु भी है । भगवती सूत्र के प्राचीन aai ने भी इस शब्द का अर्थ बायु तथा वनस्पति ही लगाया है यथा - मार्जारो वायुविशेषः तदुक्तमाय कृतमु-मार्यारकृतम् ॥ घरे स्वाह: - मार्जारो विडालिकाभियानों वनस्पतिविशेयः तेन कु भाषितं बद् तत् । [ प्रा० मी प्रभवदेवतुरिटीका पत्र- ६८१ R धर्षात् मार्जार वायु को दबाने के लिये जो भीषण संस्कार दिया जाय वह 'मार्जार कृत' माना जाता है और मर्जार,

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