Book Title: Bhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Bhikhabhai Kothari

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Page 38
________________ [..] अर्थात् पिडालिक नामक वनस्पति, से जो संस्कार किया जाय यह भी 'मार्जार कृत' माना जाता है। इस सब व्याख्या का प्राशय यह है कि यहाँ 'मार्जार' शब्द वनस्पति का घोतक है। (8) कड़ए कड़ए शल पुल्लिग है, संस्कार का सूचक है, 'मार्जार' शब्द से सम्बट है तथा 'मंमए' का विशेषण है। इसका संस्कृत पर्याय 'कृतक:' है। ___यदि यहाँ हड़य, हए, वहिए प्रादि शब्दों का प्रयोग होता तो इसका अर्थ विडाल न से मारा हुमा' भी निकल सकता पा परन्तु यहाँ 'कड़ए' का प्रयोग हुपा है जिसका अर्थ है 'मारजार से वासित भावित' पर्थात् 'संस्कारित'। इसके पतिरिक्त विडाल कुका को मारकर छोड़ दे, ऐसी अस्पृश्य तथा पृणित वस्तु को रेवती श्राविका उठाले तथा दाह रोग में उसका प्रयोग उचित मान लिया जाय यह सब मान्यताए मप्रसांगिक, वास्तविकता से दूर तथा कपोल कल्पित जंचती है। मोर फिर 'मंसए' और 'कडए' का पुलिंग प्रयोग भी 'मास' का पक्षपोषण नहीं करता तथा इस मान्यता को निरा. चार बना देता है। पौषषि विज्ञान में संस्कारित वस्तुषों के लिये 'दधिकृत', 'राजीकत', 'माजात' इत्यादि का प्रयोग होता है जिसका पर्ष यही से संरत, राई से संस्कारित तथा विगाल। (पौषषि) से संस्कारित होता है । तात्पर्य यह है कि यहां

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