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६. रोग, औषध र नियमा नियम का विज्ञान जिस रोगके लिये उक्त भौषध लाया गया था, उस रोग का नाम था 'पित्तज्वर' । 'परिगये शरीरे दाह वक्कं तिए' का प्राशय है पित्तज्वर भोर दाह, जिस में प्ररुचि, जलन तथा रक्तातिसार मुख्य लक्षण होते हैं। इस रोग को शांत करने के लिये कोला, बिजोरा प्रादि तरी देने वाले फल, उनका मुरब्बा, पेठा, कवेला, पारावत फल, चतुष्पत्री भाजी, खटाई वाली भाजी इत्यादि प्रशस्त माने जाते हैं। इस रोग में मांस का सख्त निषेध (परहेज) होता है । वैद्यक ग्रंथों में साफ साफ कहा गया है - " स्निग्धं उष्णं गुरु रक्त पित्त जनकं वातहंरच " मांस ऊष्ण है, भारी है, रक्तपित्त को बढ़ाने वाला है । प्रत: इस रोग में मांस सर्वथा निषिद्ध है। इस रोग में कोला प्रौर बिजौरा लाभकारी हैं।
( कयदेव निघण्टु, सुश्रुत सहिता )
उपरोक्त कथन से यह निश्चित हो जाता है कि वह प्रोषध माँस नहीं था वरन् तरी देने वाला कोई फल या फल का मुरब्बा था। इन सब बातों को ध्यान में रख कर हम पाठ की शाब्दिक विवेचना अगले प्रध्याय में करेंगे।