Book Title: Bhagavana Mahavir aur Aushdh Vigyan
Author(s): Darshanvijay
Publisher: Bhikhabhai Kothari

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Page 30
________________ [२२] मुलायंस्थात् पुण्यात पीतपुष्पम् पहत्कलम् ॥५३॥ पुमा पहलं वृष्यं गुरु पित्तास्त्र वातानुत् । गान पितामहं नीतं मध्यमं कफकारकम् ॥५॥ पर नाति हिमं स्वादु समारं दीपनं सषु । बस्ति मुखिकर चेतो रोग हसर्व गोपवित् ॥५५॥ सुष्माया तुम लम्बी, फर्कात रपि कीर्तिता। कर पाहिली शीता रत-पित्त-हार गुरुः ॥५६॥ पाnिiliL नी, सखारा कक पातनूत् ॥१७॥ ( कोला-पित्तरक्त पोर वायुदोष नाशक है । छोटा कोला पित्तनाशक, शीतल प्रौर कफ-जनक है। बड़ा कोला उष्ण, मीठा, दीपक, बास्ति-शुद्धि कारक, हृदयरोग नाशक तथा सर्वदोषहारी है। छोटा कोला ग्राह्य, शीतल, रक्तपित्त दोष नाशक और पक्का हो तो पग्नि वर्धक है ) ( भाव प्रकाश निघण्टु-शाक वर्ग ) मांस के गुण पोर दोषलिप रज गुरू तपित्त नगर बात हरं॥ सर्व मास बात विसि पृथ्वं ॥ मांस रक्त व्याधियों तथा पित्तविकारों को बढ़ाने वाला है भव यदि महावीर स्वामी के दाहरोग पर विचार किया जाय तो यह बात निर्विवाद सिद्ध हो जाती है कि कपोतपक्षी का मांस रोग का निवारण नहीं कर सकता। इसमें कपोत बनस्पति, पारिस तथा कोलाफल मादि अत्यधिक उपयोगी है। साप साप यह तथ्य भी सिद्ध हो जाता है कि रेवती

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