Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

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Page 13
________________ हुआ था। झिलमिल सितारो से जड़ी रजनी रानी दुल्हन बनी अनुपम साडी ओढे जैसे थिरक रही हो प्रेम बरसा रही हो, उमग की धडकन के तार बजा रही हो । और जैसे मानो अपने आप मे लाज की मारी सिकुडी जा रही हो । शान्त वातावरण और शीतल मन्द सुगन्ध पवन कही दूर पर क्षितिज की ओट से विद्युत की चमक भी कभी कभी दिखाई दे रही थी। ऐसे सुहावने समय मे · .....। हाँ । हा । ऐसे सुहावने समय मे मरुदेवी अपने प्रियतम महाराजा 'नाभि के साथ शयन कर रही थी। दिल धडक रहा था मीठा मीठा, और चेहरा मुस्करा रहा था। नेत्र की पलके अर्धविकसित थी और अंग प्रत्यग अन्दर ही अन्दर नृत्य कर रहा था। महाराज नाभि ने करवट बदल ली थी और गहरी निद्रा मे डूब चुके थे । पर रानी " रानी मुस्कराती जा रही थी। जमे जग रही हो। जैसे उसे सभी कुछ बातो का भान हो । पर रानी तो निद्रा देवी की सुहावनी गोदी मे अनुपम और मीठे स्वप्नो मे मोज ले रही थी। शरमा कर, लजाकर और अपने आप मे सिकुडती हुई रजनी ने प्रस्थान किया। प्राची का चेहरा मुस्करा उठा। बगियो में वहार नाच उठी। फूलो की कलिया खिल उठी और रग विरगी चिडिया अपना निरक्षरी गाना गा उठी। प्रभाती का मगल वाद्य मधुर और सुहावने सुर मे बजने लगा. तभी दासियो ने रानी मरुदेवी के शयन कक्ष में प्रवेश किया। रानी मादेवी अग पत्यग को सम्हालतो हुई जग ही थी। उसके कानो ने बाहर का मगल वाध सुन लिया पा। प्रभात का मीठा शोर भी कानो ने सुन लिया था। महारानी को जगती हुई देखकर दासियो ने मानन्द भरे शब्दो में जब बोली और मगल

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