Book Title: Bhagavana Adinath
Author(s): Vasant Jain Shastri
Publisher: Anil Pocket Books

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Page 11
________________ १-धन्य धन्य मरुदेवी कुति . treatrn . . . उत्तम और अत्युत्तम आर्य क्षेत्र के मध्य मे नाभि के सदृश शोभायमान यह नवनिर्मित नगरी सत्यत सर्वोत्तम ही है। इसीलिए तो यह सर्वप्रिय है। सर्वप्रिय होने के कारणभूत ही तो इसका कोई भी शत्रु नहीं है-और कोई भी शत्रु न होने से यह युद्ध से भी रहित है। युद्ध की आशका यहाँ न होने से ही तो इस नवनिर्मित अनुपम नगरी का नाम 'अयोध्या' रखा गया है । अयोध्या नगरी आज सजी सजाई दुल्हन की तरह लग रही है । शरमाई सी, अलकाई सी, अगडाई । सी यह नगरी स्वत ही मन को मोह रही हैं। रगविरगी कलियो से शोभित, मन्द सुगन्ध पवन से सुरभित, सुमधुर चहचहाते-विहग गरण से चर्चित, और मदमाती, इठलाती, सरसराती स्वच्छ शीतल नीर सहित सरिता से मण्डित यह नगरी इन्द्र की पुरी को भी मात दे रही है। प्रथम तो अयोध्या ही ऐसी-अनुपमा-नगरी, इसपर भी ठीक | इसके मध्य मे अनेक पताओं से मण्डित भव्य विशाल और मनोज्ञ भवन-जिसे देवतानो ने निर्मित किया-तो और भी आकर्षक हो गये है दूर से ही भान हो जाता है कि यही यहा के शासक का महल है । भान भी सत्य ही है । क्योकि यह भवन यहां के कुशल और नीतिज्ञ शासक-महाराजा 'नाभि' का प्रावास-गृह है। महल के ठीक मध्य में एक विशाल और मनोज्ञ साज-सज्जा से सुसज्जित सभा मण्डप (हॉल) है जिसमे अवकाश के समय महाराजा अपनी रानी एवं अन्य सलाहकारो के साथ विचार-विमर्श किया करते

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