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प्राक्कथन
प्रभिनन्दन एवं स्मृतिग्रन्थों की प्रकाशन परम्परा इस युग का एक महत्वपूर्ण प्रायोजन है । जिन्होने अपने मावन जीवन को ज्ञानाराधना, आत्म-साधना, साहित्यसेवा, परोपकार, दया और सहानुभूति पादि लोकहितकारी कार्यों से पुनीत एवं अनुकरणीय बना दिया है उनका मत्कार- समादर तो ऐसे प्रायोजनों से होता ही है किन्तु उनसे एक लाभ और भी है। ऐसे प्रकाशनों ने दर्शन, पुरातत्व, इतिहास, समाजशास्त्र, राजनीति, अर्थशास्त्र, धर्म एवं विभिन्न कलाओं पर भिन्न-भिन्न लेखकों द्वारा लिखे हुए लेख एक ही जगह अनायास हो उपलब्ध हो जाते है । पाठकों को अपना ज्ञान भण्डार भरने के लिए यह उपलब्धि वस्तुतः असाधारण है। इससे नये एवं उदीयमान लेखकों को प्रोत्साहन एवं प्रेरणा भी मिलती है । यह लाभ भी कम नहीं है ।
जहां तक मेरा ख्याल है हिन्दी में इस परम्परा का श्री गणेश हिन्दी के परम उन्नायक स्व० श्री महावीर प्रसाद द्विवेदी के अभिनन्दन ग्रन्थ मे प्रारम्भ हुआ। जिन लोक हितैषियों का अपने जीवन काल में अभिनन्दन नहीं हो सका उनका उनकी मृत्यु के बाद ऐसे प्रकाशनों द्वारा समादर किया गया और अब तो यह परम्परा बड़ी तेजी से पल्लवित हो रही है और ऐसे लोगों के अभिनन्दन एवं स्मृति ग्रन्थ भी प्रकाशित हुए हैं जो उनके योग्य नहीं थे फिर भी सब मिलाकर यह कहना होगा कि यह पर म्परा ज्ञानाराधना यादि की दृष्टि में वास्तव में उपादेय ही है।
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जैन समाज में भी ऐसे अनेक उल्लेखनीय ग्रन्थ प्रकाशित हो चुके हैं। ऐसा याद पड़ता है कि सबसे पहिले प्रभात इतिहासज्ञ स्व० श्री नाथूरामजी प्रेमी का अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हुआ था। इसके बाद श्री वर्णी प्रभिनन्दन ग्रन्थ श्री चन्दावाई अभिनन्दन ग्रन्थ श्री महात्मा हजारीबाल प्रभिनन्दन ग्रन्थ, विजयवल्लभ सूरि स्मारक ग्रन्थ श्री रजिस्सूरि स्मारक ग्रन्थ, तुलसी अभिनन्दन ग्रन्थ, कानजी स्वामी अभिनन्दन ग्रन्थ भादि भनेको अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित हुए जो अनेक दृष्टियों से महत्वपूर्ण और संग्रह योग्य है।
एक लम्बे में मे मेरा विचार था कि बाबू छोटेलालजी का भी एक ऐसा ही अभिनन्दन ग्रन्थ प्रकाशित किया जाय। यह विचार मेने मेरे प्रिय शिष्य श्री वंशीधर शास्त्री एम० ए० के सामने रखा और उन्होंने इस विचार को आगे बढ़ाया। इसके फलस्वरूप कलवल में श्री छोटेलाल अभिनन्दन समिति