Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 205
________________ तेरापंथचतुर्विंशतिः १८३ बभौ पाणेर्युग्मं प्रणयनतभालस्थलगतं, रसज्ञा संस्तोतुं तमथसहसा स्फूर्तिमगमत् ॥२१॥ वर्षा के कारण प्राणियों की आंखों में नई लालिमा उमड़ आयी। उनके मुखकमल खिल उठे। दन्तावलि विकचित हो गई। दोनों हाथ जुड़े और ललाट पर लग गए। उस स्थिति का वर्णन करने के लिए जिह्वा स्फुरित हो उठी। (आचार्य भिक्षु के प्रवचनों से लोगों में नई आशा का संचार हुआ। उनके चेहरे प्रसन्नता से खिल उठे। वे भिक्षु के चरणों में गिर पड़े। सर्वत्र उनकी प्रशंसा होने लगी।) स भिक्षुर्मेधात्मा ततयशसि विश्वे प्रतिपलं, शरीरं त्यक्त्वापि प्रकटमहिमा जीवतितराम । तदीयं प्राधान्यं तदनुघन एवाभिलषते, प्रमाणं तत्रातः परमिह किमस्तु स्फुटमहो ।।२२।। विश्व में व्याप्त यशवाले वे मेघात्मा भिक्षु शरीर को छोड़कर भी अपनी महिमा द्वारा जी रहे हैं। उनके बारे में होनेवाले मेघ आचार्य) भी उनकी प्रधानता को चाहते हैं। उनके जीवित होने का इससे अधिक क्या प्रमाण आवश्यक हो सकता है ? तदाकारस्तद्वल्लसति तुलसीराममुनिपस्तपः पूताकूत: कविहृदय आत्मोन्नतिरतः । सुधाबिन्दूत्सेकात्कलितवसुधाखण्डसुहितो, वदान्यः सम्मान्यो गुरुतरगुणरञ्चितवपुः ॥२३।। उन्हीं की तरह आचार्य तुलसी शोभित हो रहे हैं। उनका अन्तःकरण तप से पवित्र है । वे कविहृदय हैं और आत्मोन्नति में रत हैं। अपनी वाणी-रूपी सुधाबिन्दु के सिंचन से उन्होंने पृथ्वी-खंड को तृप्त कर दिया है। वे उदार, सम्मान्य और अनेक वरिष्ट गुणों से युक्त हैं। विभुर्मुख्यो वाचाममिततममेधाविमुकुटो जयत्तेरापन्थाधिपतिरभिरामं विजयते । पदाब्जे तस्यैव प्रमुदमुपगच्छन्ननुपदं, व्यधात्तेरापन्थप्रकृतगुणकाव्यं नथमलः ॥२४॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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