Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 222
________________ २०० अतुला तुला होता है। जिसकी मर्यादा में आचार भी विचार युक्त होकर फलित होता है, उस शासन का मंगल हो। यत्राहिंसा स्फुरति सततं भावनानां विशुद्धयै, यत्राशुद्धि जति विलयं भावनानां विशुद्धौ । साम्यं यत्र श्रयति सुषमां सर्वजीवेषु काम, जैनं गच्छत्युदयमनघं शासनं तत्र तत्र ॥४॥ जहां भावना की विशुद्धि के लिए अहिंसा निरन्तर स्फूरित होती है, जहां भावना की विशुद्धि में सारे दोष नष्ट हो जाते हैं, जहां सर्वजनों के प्रति समता की सुषमा प्रस्फुरित होती है, वहां-वहां पवित्र जैन शासन उदित होता है। कल्याणाय समस्तविश्वमधुना कांक्षापरं विद्यते, व्याप्तं किन्तु विभाति तत्र बहुलं ध्वंसोद्भवं साध्वसम् । हिंसाभीतिरियं भवेद् विगलिता स्यान्निर्भयं मानसं, जैन शासनमित्थमुद्यमरतं स्याच्छ्रे यसे सर्वतः ।।५।। आज समूचा विश्व कल्याण का आकांक्षी है किन्तु विनाश से उत्पन्न भय सर्वत्र व्याप्त है । हिंसा का यह भय विगलित हो और सबका मानस निर्भय बने । जैन शासन इस ओर प्रयत्नशील बनकर सबके कल्याण के लिए कार्य करे। तुल्लो अतुल्लो न हु अत्थि कोवि, सन्तो असन्तो वि न अस्थि कोवि । सावेक्खदिट्ठ परमत्थि दिट्ठ सावेक्खदिट्टि कुणउप्पसत्थं ।।६।। संसार में तुल्य और अतुल्य कुछ भी नहीं है, सत् और असत् कुछ भी नहीं है। सापेक्षदृष्टि से जो दृष्ट है वही वास्तव में दृष्ट है। इसलिए सापेक्षदृष्टि को प्रशस्त करो। यस्मिन् पौरुषमर्हति प्रतिपदं रेखां . स्फुटां नूतनां, यस्मिन् सर्वसमानता प्रतिपदं सवान् समाकर्षति । यस्मिन्नुच्छल ति प्रकाममभयं भीतानभीतान् सृजन्, तस्याणुव्रतदर्शनस्य लषतां रत्नत्रयी पावना ॥७॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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