Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 221
________________ १ : जैनशासनम् यत्स्याद्वादसुयोधनैरुपशमं नीता विरोधव्यथा, वीराणामुचितं विराजतितमां यस्मिन्नहिंसा ध्रुवम् । यदृष्टिः समतामयी स्फुरति वा जीवेषु सर्वेष्वपि, स्वस्तिश्रीजिनशासनाय सततं तस्मै विशुद्धात्मने ॥१॥ जिसने स्याद्वाद के शस्त्र से विरोध की व्यथा को उपशान्त कर डाला, जिसमें वीरोचित अहिंसा का विधान है, जिसमें समस्त जीवों के प्रति समता की दृष्टि विद्यमान है, उस विशुद्धात्मा जैन शासन का सतत कल्याण हो। ज्ञानं श्रद्धा चरणमनघञ्चाहतीयं त्रयीह, साङ्गोपाङ्गा लसति सुमतिर्यत्र भव्यस्वभावा । सत् स्याद्वादो नयननयनो वर्द्धमानो जिनेन्द्रः, प्राज्ञैः पूज्यो मुनिपतुलसीः स्वस्ति तस्मै गणाय ॥२॥ जिसमें सम्यग् ज्ञान, सम्यग् दर्शन और सम्यग् चारित्र-यह रत्नत्रयी विद्यमान है, जिसमें भव्य स्वभाववाली सांगोपांग सन्मति विराजमान है, जिसमें सत् स्याद्वाद, चक्षु का चक्षु जिनेन्द्र वर्द्धमान तथा विद्वत्-पूज्य आचार्य तुलसी हैं-उस भक्षव गण का कल्याण हो। येनाज्ञानमपाकृतं वृतमपि ज्ञानं ततोनन्तगं, तच्छ्रीवीरजिनेशितुळपमले जैनाह्वये शासने । स्याद्वादो लषतेऽभटो हि सुभटोऽहिंसाहवे स्फूर्तिमान्, आचारोऽपि विचारवान् फलति तत्स्यान् मंगलं मंगलम् ॥३॥ जन्होंने छिपे हुए अज्ञान को दूर कर अनन्त ज्ञान को पा लिया, उन श्रीवीर जिनेन्द्र के पवित्र जैन शासन में स्याद्वाद प्रदीप्त हो रहा है। वह ऐसा सुभट है कि जिसके प्रतिपक्ष में कोई भट नहीं है। वह अहिंसा के युद्ध में ही स्फूर्तिमान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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