Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 236
________________ २१४ अतुला तुला वीरतुलामधिरोढुं सम्यक्, त्वं चाईसि दैपेय ! । साधुसमाजे स्थापितसीमन् ! कष्टप्रकराजेय ! । एतावेव गुणौ कुर्वाते, तव सर्वत्राप्यधिकारम् ।।६।। चित्रकारिणी प्रतिभा तव तद्, विहिता सङ्कलनाऽथ । सकल विपश्चिच्चेतसि रमतामित्याशासे नाथ ! । मोदेऽहं नथमल्लः शिरसा, तां च सदा धारं धारम् ।।७॥ प्रभो ! तुम कल्पवृक्ष की भांति मनोकामना पूर्ण करने वाले हो। तुम दाता और जगत् के आधार हो । तुम सदामेरे स्मृति-पथ में बने रहते हो। फिर भी आज मैं तुम्हारी स्मृति कर रहा हूं। देव ! तुम मेरी नौका को भव-पार पहुंचा दो। विभो ! तुम्हारे सद्गुणों की गरिमा को विद्वान् ही जानता है । ग्वाला मणि की महिमा का अनुमान कैसे करेगा ? मैं तुम्हारे पवित्र स्तवन को हृदय में माला के रूप में धारण करता हूं। देव ! तुम्हारे सभी गुण मेरे हृदय में अंकित हैं। किन्तु मैं उन गुणों को वाणी के पत्र में अंकित नहीं कर सकता। क्या कोई मनुष्य घड़े में समुद्र को भर सकता है ? नहीं। तो भी यह जिह्वा तुम्हारे गुणगान के रस को जानकर अज्ञान को छोड़, रसज्ञा' इस प्रकार की अपनी संज्ञा (नाम) को चरितार्थ करे। स्वामिन् ! प्रसन्न होकर मैं इसी भावना से यहां (तुम्हारे स्तुति-लोक में) संचरण कर रहा हूं। ____ मेरु पर्वत की तुलना में दूसरा कौन-सा पर्वत आ सकता है ? सूर्य-मंडल की किरणों के सामने कौन तेजस्वी जान पड़ता है ? आत्मबल से सम्पन्न व्यक्तियों में मैं पहले तुम्हारा सत्कार करता हूं। हे अधीश ! अज्ञानी व्यक्तियों ने निन्दामय वचनों के द्वारा तुम्हारे लिए जो कुछ कहा है, वही तुम्हारा नाम आज सुन्दर और स्तुतिमय हो रहा है । भीलनी के द्वारा त्यक्त निर्मल मोती, उसके मूल्य को जाननेवाले के लिए सारभूत हो जाता है। __ दैपेय ! तुम भगवान् महावीर की तुलना में आ सकते हो। हे साधु समजा में मर्यादा की स्थापना करने वाले ! हे कष्ट से अजेय !-ये तुम्हारे दो गुण (मर्यादा का निर्माण और कष्ट-सहिष्णुता) सर्वत्र अधिकार किए हुए हैं। प्रभो ! तुम्हारी प्रतिभा विलक्षण थी। तुम्हारे द्वारा संकलित वाणी सभी विद्वानों के चित्त में रमण करे, यही मैं आशा करता हूं। मैं उस वाणी को सदा अपने सिर पर धारण करता हुआ प्रसन्न रहता हूं। (वि० सं० १६६६, चातुर्मास, चूरू) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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