Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 240
________________ २१८ अतुला तुला __ तुम एक तो वक्ता हो और दूसरे में तुम्हारे पास स्याद्वाद की प्रबल युक्ति है । चक्रवर्ती अपने बल से ही अजेय होता है। उसके हाथ में चक्र हो, फिर तो कहना ही क्या ? ___ आपके योग से मेरा हृदय विविध कर्मों का क्षय कर लघु हो गया किन्तु आपके उपकार ने उसे पुनः गुरु बना दिया। इसीलिए उसके चरण भूमि पर टिके निपुण व्यक्तियों को प्रतिबोध देने के लिए अनेक निपुण लोग हैं, किन्तु मेरे जैसे बालक को प्रतिबोध देने के लिए तो भगवन् ! तुम्हारी ही प्रशस्ति गायी जाएगी। ___ मैंने तुम्हारे वर्णनातीत, वचनातीत और गणनातीत उपकार को गाने के लिए (इस स्तवना के माध्यम से) अपार साहस किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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