Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 237
________________ ६ : कालूकीर्तनम् (पज्झटिकावृत्तानि) श्रीमज्जिनशासनभर्तारं भक्षवगणवीवधधर्तारं । जिनपतितुल्यं पुण्याधारं, स्मर नितरामयि कालूरामम् ।।! हृतनिजतेजस्कारुणकान्ति वदनाम्भोजे राजितशान्तिम् । दुःखितदेहभृतां विश्राम, स्मर नितरामयि कालूरामम् ॥१॥! सुरतरुतोप्यधिकं दातारं, निकटीकृतभवसागरपारम्। .. तनुसौन्दर्यस्तजितकामं, स्मर नितरामयि कालूरामम् ॥२॥! श्रुतमेवं कर्ता स्यादन्यस्त्राताप्यपरो विदुषा ध्वन्यः । नाशयिताप्यपरोस्ति प्रकामं, स्मर नितरामयि कालूरामम् ॥३॥! स्वामिन्निति लोकोक्तिःस्फीता, सा त्वयका विहिता विपरीता । त्वयि शक्तित्रयमस्ति निकामं, स्मर नितरामयि कालूरामम्॥४॥! श्रेयान्स्युत्पादयसे विरतं, दुःखाद् रक्षसि संसृतिविरतम् । नाशयसे कर्माण्यविरामं, स्मर नितरामयि कालूरामम् ॥५॥! गुरुवर्य समतामृतपीनं, नथमल्लोहत्पट्टासीनं । हर्षति सुतरां नामं नामं, स्मर नितरामयि कालूरामम् ॥६॥! श्रीजिनशासन के स्वामी, भैक्षव गण के भार को धारण करने वाले, जिनपति के सदृश तथा पुण्य के उपवन श्री कालूगणी का तुम सदा स्मरण करो। उन्होंने अपने तेज से सूर्य की कान्ति का हरण किया है। उनके मुख-कमल पर शांति विराजित है। वे दुःखी प्राणियों के लिए विश्रामस्थल हैं, तुम सदा उनका स्मरण करो। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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