Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 224
________________ २ : महावीरो वर्द्धमानः मैत्री सर्वजगद्गता विषमता संच्छिन्नमूला यतः, स्वातन्त्र्यं स्वगतं प्रकाशमभजत् शक्ति स्वकीयां विदत् । जाति लिङ्गमुपेक्ष्य शक्तिमनयद् धर्मः प्रसारोचितां, तस्माद् वीरजिनाज्जगत् प्रतिपलं ज्योतिः रमां स्कन्दताम् ।। भगवन् महावीर के कारण मैत्री सर्वजगत् व्यापी हो गई। विषमता मूल से ही उखड़ गई। स्वतन्त्रता को अपनी शक्ति का भान हुआ और उसे प्रकाश मिल गया। धर्म ने जाति और लिंग की उपेक्षा कर प्रसारोचित शक्ति प्राप्त की। उन वीर भगवान् से यह जगत् ज्योति और सम्पदा को सदा प्राप्त करे। यः स्याद्वादो वदनसमये योप्यनेकान्त दृष्टिः, श्रद्धाकाले चरणविषये यश्च चारित्रनिष्ठः । ज्ञानो ध्यानी प्रवचनपटुः कर्मयोगी तपस्वी, नाना रूपो भवतु शरणं वर्द्धमानो जिनेन्द्रः ।।२।। जो बोलने के समय स्याद्वादी, श्रद्धाकाल में अनेकान्तदृष्टि वाले और आचरण-काल में चारित्रनिष्ठ हैं तथा ध्यानी, प्रवचन-पटु, कर्मयोगी और तपस्वी हैं-इस प्रकार नानारूप वाले वर्द्धमान शरणदाता हों। आलोकेन प्रसृमररुचोद्भासितं . येन गूढं, रूढा श्रद्धा कुमतविततोन्मूलितोल्लासपूर्वम् । स्याद्वादोत्स: प्रभवमगमद् यस्य साम्याचलोच्चात्, स श्रीवीरः प्रगतिसरणौ स्फूर्तिहेतुः प्रभूयात् ॥३॥ जिन्होंने प्रसरणशील प्रकाश से हृदय को आलोकित किया, जिन्होंने कुमत से विस्तृत रूढ़ श्रद्धा को उल्लास पूर्वक उन्मूलित किया, जिनके समता-पर्वत Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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