Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 215
________________ ८ : महावीराष्टकम् उन्नता चरणे श्रद्धा, वृद्धा सा पापकर्मणि । सन्नद्धा स्वात्मसंज्ञाने, देव ! भूयात् सदा मम ॥ १ ॥ देव ! तुम्हारे चरणों की उपासना करने के लिए मेरी श्रद्धा उन्नत, पापकारी कार्यों के प्रति वृद्ध तथा आत्म-संज्ञान के लिए सदा तत्पर हो । सत्कृतो वाऽसत्कृतो. वा, त्वया स्यां स्यां न वा पुनः । वीतरागो यतोऽसि त्वं, त्वं सदा देव ! तुम्हारे द्वारा मैं सम्मानित होऊं या असम्मानित होऊं, इसमें कोई बात नहीं है क्योंकि तुम वीतराग हो । किन्तु तुम मेरे द्वारा सदा सम्मानित हो । स्नेहाश्चक्षुषोर्वाष्पैः, Jain Education International सत्कृतो मया ||२|| क्षालितौ चरणौ तव । क्षालये राकृति नाप्त श्वापि मे मानसं मलम् ||३|| प्रभो ! मैंने आंखों के स्नेहार्द्र आंसुओं से तुम्हारे चरणों का प्रक्षालन किया है । किन्तु तुम मूर्त बनकर भी मेरे मानस-मल का प्रक्षालन नहीं करते । अदृश्यो यदि दृश्यो न, भक्तेनाऽपि मया प्रभो ! For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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