Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 204
________________ १८२ अतुला तुला आश्वस्त हुए और उन्होंने धर्म का सही मागं पाकर अपने आप में अपूर्व शान्ति का अनुभव किया । ) अपश्यन्नामोदात्त्वरितगतयः केपि सुजना स्तथा स्प्राक्षुः केचिद् विपुलपुलकास्तद्गहनताम् । कतिचनजनाः सस्मयतया, तथेयुः सामीप्यं किमेतत् किवैतत्स्फुरितवचना आकाश में मेघ उमड़ आए। कई सुजन व्यक्ति प्रसन्नता से उन्हें देखने के लिए शीघ्र ही बाहर आए। कई पुलकित व्यक्तियों ने उन मेघों की गहनता के विषय में पूछताछ की । कई व्यक्ति आश्चर्य से एकत्रित हुए और आकाश की ओर देखते हुए - 'यह क्या है, यह क्यों है' - इस प्रकार वितर्कणा करने लगे । --- ( आचार्य भिक्षु धर्म का मर्म समझाने लगे। लोगों में कुतूहल हुआ। कई व्यक्ति उनको देखने के लिए आए। कई तत्त्व - विचारणा में उनकी गहनता को परखने लगे और कई व्यक्तियों ने उनके नानाविध परीक्षण किए 1 ) प्रतिक्षेत्रं भ्राम्यंल्ललितमुदिरो वपुस्तप्ति पुंसामहरततमां दृष्टगगनाः ॥ १६ ॥ कले: कोपो माभूत्सफल इति संचिन्त्य मनसा, प्रचक्रे मर्यादां सलिलपटलस्यापि बोधविदुरो, स्निग्धमधुरः । प्रपेदाते तूर्णं मुखाम्भोजस्मेरं सबको प्रबुद्ध करने में निपुण मेघ सभी क्षेत्रों में घूमने लगा - बरसने लगा । उसने अपने स्निग्ध और मीठे जल से प्राणियों के शारीरिक ताप का हरण किया । कलिकाल का क्रोध सफल न हो—यह मन में सोचकर मेघ ने अपने सलिल पटल के चारों ओर घेरा डाल दिया । Jain Education International ( आचार्य भिक्षु गांव-गांव घूमने लगे । उनकी मीठी और सरस वाणी को सुनकर लोगों के मन तृप्त हो गए । उन्होंने अपने संघ-संगठन को दृढ़ करने के लिए मर्यादाओं का निर्माण किया। संघ के चारों ओर मर्यादाओं का घेरा डाल दिया । ) नवतरुणिमानं विकचरदनश्रेणि परितः ॥२०॥ च नयने, यदभूत् । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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