Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

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Page 211
________________ आत्मदर्शन-चतुर्दशकम् १८६ ब्रह्मचर्य का पालन सबसे अधिक दुष्कर होता है। ऐसा सुन-सुनकर कान और मन-दोनों दुर्बल हो गए। देव ! आप जिनके हृदय में अभिन्न रूप से निवास करते हैं उन भक्तों के लिए कौन-सी वस्तु सुकर नहीं होती ? त्वं पारदर्शीत्यमुना प्रलुब्धो, जातोसि रे ! मे व्यवधानहेतुः । पश्यामि पारं प्रियमात्मबुद्धया, . नायामि नायाति स एष मां माम् ॥१४॥ 'तुम पारदर्शी हो' -मैं इस बात से ठगा गया और तुम मेरे लिए व्यवधान के हेतु बन गए। मैं आत्मबुद्धि के द्वारा उस पार को देखता हूं, पर उस तक पहुंच नहीं पाता और न वह मेरे पास आ रहा है। (वि० सं० २००५ छापर) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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