Book Title: Atula Tula
Author(s): Nathmalmuni
Publisher: Adarsh Sahitya Sangh

View full book text
Previous | Next

Page 203
________________ तेरापंथचतुर्विंशतिः १८१ अगर्जत्पर्जन्योप्यहमनुभवामीति सुतरा मलंकुर्वन्नुच्चैः पुलकितनभःप्राङ्गणमलम् ।।१६।। अपने अनन्य मित्र पवन की हृदयोत्थित वाणी को सुनकर मेघ में नई स्फूर्ति का संचार हुआ। उसमें नई चेतना आयी। वह गर्जारव करने लगा। 'मैं भी पवन के कथन का अनुभव करूं' यह सोचकर मेघ प्रसन्न-मन होकर आकाशप्रांगण में ऊंचा उठ गया। (आचार्य भिक्षु ने दोनों मुनियों की बात सुनी। उनकी निराशा टूट गई। नई चेतना का संचार हुआ। उन्होंने कहा-'मैं तुम्हारी बात को स्वीकार कर भाज से पुनः प्रचार-जीवन में आ रहा हूं'- यह कहकर वे प्रवृत्ति-क्षेत्र में आ गए ।) विलोकिष्यन्ते ये स्फुटनयनराजीवयुगलास्तथा ये स्प्रक्ष्यन्ति प्रकृतिपुलकाञ्चत्तनुकणाः । कदाचिन् मोक्ष्यन्ते नहि समययोग्यं प्रकरणं, ममेदं क्षेत्राणां हितकरमपारश्रममितम् ॥१७॥ . विकसित नयनकमल वाले लोग मुझे देखेंगे और वे प्रकृति से पुलकित होकर मेरी बंदों का स्पर्श करेंगे। मुझे विश्वास है कि वे खेतों के लिए हितकर, अपार श्रम से प्राप्त इस समय-योग्य वर्षा के लाभ को कभी नहीं छोड़ेंगे। (भिक्षु ने सोचा-लोग मेरा सम्पर्क करेंगे और मेरी वाणी को सुनेंगे । मुझे विश्वास है कि वे धर्म के सही मार्ग को पाकर लाभान्वित होंगे।) पुनस्तत्रारेभे घनरसकणासारमतुलं, चकम्पे सातहूं कलिहृदयमालोलगतिकम् । सदाशाबिन्दूनां श्रवणमभिरामं दृशि गतं, तदाकारां शान्ति व्यतरदविरामं तनुभृताम् ॥१८।। मेघ बरसने लगा। कलिकाल का चपल और भयभीत हृदय कांप उठा। आशा के बिन्दुओं का झरना आंखों के सामने नाचने लगा। वह मनुष्यों को अविराम शान्ति देने लगा। (भिक्षु ने प्रचार-कार्य प्रारम्भ किया। लोग आने लगे। विरोधियों के मन शंका से भर गए। उनमें ईर्ष्या पैदा हो गई। आचार्य भिक्षु की वाणी से लोग Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 201 202 203 204 205 206 207 208 209 210 211 212 213 214 215 216 217 218 219 220 221 222 223 224 225 226 227 228 229 230 231 232 233 234 235 236 237 238 239 240 241 242