Book Title: Astaka Prakarana
Author(s): K K Dixit
Publisher: L D Indology Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 10
________________ प्रस्तावना प्रस्तुत ग्रंथ में प्रख्यात जैन मनीषी आचार्य हरिभद्र सूरि (समय सातवीं - आठवीं शताब्दी ईसवी) के ३२ अष्टकों का ( अर्थात् आठ आठ कारिकाएँ वाली विविध चर्चाओं का ) संग्रह है । सामान्यतः कहा जा सकता है कि आचार्य हरिभद्र की दृष्टि में सबसे महत्त्वपूर्ण प्रश्न वे थे जिनका संबंध आचारशास्त्र की ज्वलंत समस्याओं से हो और क्योंकि प्राचीन तथा मध्यकालीन भारत में उन उन आचारशास्त्रीय मान्यताओं का प्रतिपादन तथा प्रचार उन उन धर्मशास्त्रीय परंपराओं के माध्यम से हुआ करता था । आचार्य हरिभद्र की दृष्टि में दूसरे महत्त्वपूर्ण प्रश्न वे थे जिनका संबंध धर्मशास्त्र की ज्वलन्त समस्याओं से हो। इस प्रकार का दृष्टिकोण अपनाकर आचार्य हरिभद्र अपने पाठकों को जताना चाहते थे कि ऐसे प्रश्नों की चर्चा जिनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध आचारशास्त्रीय अथवा धर्मशास्त्रीय समस्याओं से न हो उनके मतानुसार एक निरर्थक चर्चा है । प्रस्तुत ग्रंथ संगृहीत 'धर्मवाद' नाम वाले अष्टक तेरह में आचार्य हरिभद्र ने इसी प्रश्न पर ऊहापोह किया है कि धर्मवाद का— जो उनके मतानुसार वाद का सर्वोत्कृष्ट प्रकार है—विषय क्या होना चाहिए और वे इस निर्णय पर पहुँचे है कि धर्मवाद का विषय होना चाहिए यह जिज्ञासा कि उन उन चिंतन - परंपराओं की मौलिक मान्यताएँ स्वीकार करने पर 'धर्म - साधन' संभव बने रहते हैं अथवा नहीं । यहाँ 'धर्म-साधन' से आचार्य हरिभद्र का आशय है मोक्ष का साधन सिद्ध होने वाले आचार से, और यह कहा जा सकता है कि प्रस्तुत ग्रंथ में संगृहीत अष्टकों में आचार्य हरिभद्र ने कतिपय ऐसे ही प्रश्नों की चर्चा की है जिनका प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष संबंध मोक्ष - साधन की समस्याओं से है । आचार्य हरिभद्र एक जैन थे और इसलिए उनका यह सोचना स्वाभाविक ही था कि मोक्ष - साधन से संबंधित समस्याओं का जैन परंपरा द्वारा प्रस्तुत किया गया समाधान एक सर्वथा सुसंगत समाधान है जबकि किसी भी दूसरी परंपरा द्वारा प्रस्तुत किया गया एतत्संबंधी समाधान एक न्यूनाधिक असंगत समाधान है। लेकिन उनके दृष्टिकोण की एक विशेषता ध्यान देने योग्य है और वह यह कि Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 ... 142