Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 8
________________ प्रकाशकीय प्राचार्य कुन्दकुन्द जैन सैद्धान्तिक साहित्य एवं शौरसेनी प्राकृत के मूर्धन्य मनीषी हैं मोर अनेकान्त दृष्टि के प्रबल समर्थक/प्रचारक भी। इनकी निर्मित कृतियाँ-समयसार, प्रवचनसार, पंचास्तिकाय और नियमसार-जैन दर्शन, कर्म-सिद्धान्त, अनेकान्तवाद और रत्नत्रयी का प्रमुखता से विश्लेषण करने वाली हैं। इनकी उक्त कृतियां शताब्दियों से समाहत और स्वाध्याय का अंग __इनकी एक और प्रसिद्ध कृति है-अठ्ठपाहुड अर्थात् अष्टप्राभृत । इसमें दर्शन, सूत्र, चारित्र, बोध, भाव, मोक्ष, लिंग और शील संज्ञक पाठ लघु कायिक पाहुडों का संग्रह है। इन कृतियों में प्राचार्य ने उक्त विषयों का संक्षेप शैली में बहुत सुन्दर प्रतिपादन किया है। इन पाठों की गाथा संख्या 503 है। सम्यग् दृष्टि का लक्षण देते, हुए प्राचार्य कुन्दकुन्द कहते हैं-"जो अरहंत द्वारा कथित सूत्र के अर्थ को, जीव-अजीव आदि बहुविध पदार्थों को तथा हेय और उपादेय को भी जानता है, वह निश्चय ही सम्यग्दृष्टि होता है ।" (गाथा 12) इसी प्रकार बाह्य क्रिया-समर्थकों के प्रति प्राचार्य का दृष्टिकोण है"यदि (कोई) प्रात्मा को नहीं चाहता है, परन्तु अन्य सकल धर्म क्रियाओं को करता रहता है, तब भी वह सिद्धि/पूर्णता प्राप्त नहीं करता है । अतः (ऐसा बाह्य क्रियावादी) संसार (मानसिक तनाव) में स्थित कहा गया है।" (गाथा 14).... इसी अष्टपाहुड के सुरभित पुष्पों में से 100 का चयन कर डॉ. सोगाणी जी ने प्रस्तुत चयनिका तैयार की है और अपनी विशिष्ट शैली में व्याकरण Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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