Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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45 जह पत्थरोण भिज्जइ परिट्ठिो दोहकालमुदएण। .
तह साहू वि ण भिज्जइ उवसग्गपरीसहेहितो ॥
46 पावं हवइ असेसं पुण्णमसेस च हवइ परिणामा ।
परिणामादो बंधो मुक्खो जिरण सासणे दिट्ठो ॥
47 जह दीवो गम्भहरे मारुयबाहाविवज्जिो जलइ ।
तह रायानिलरहिरो झाणपईवो वि पज्जलइ ।
48 झायहि पंच वि गुरवे मंगलचउसरणलोयपरियरिए ।
परसुरखेयरमहिए .. पाराहणणायगे वीरे ॥
49 उत्थरइ जा ण जर प्रो रोयग्गी जा ए डहइ देहडि ।
इंदियबलं त वियलइ ताव तुमं कुणहि अप्पहियं ॥
50 जीवविमुक्को सवनो दंसणमुक्को य होइ चलसवनो।
सवो लोयमपुज्जो लोउत्तरयम्मि चलसवो ॥
18 ]
[ अष्टपाहुड
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