Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
- [(उवलद्ध) भूकृ अनि-(पयत्थ)7/1] । पुण (अ)= निश्चय ही। सेयासेयं [(सेय)+ (असेयं)] [(सेय)-(असेय) 2/1] । वियाणेदि (वियाण) व
3/1 सक। 5 सेयासेयविदण्हू (सेय)+ (असेय)+ (विदण्हू)] [(सेय)-(असेय)
(विदण्हु)वि1/1] । उखुददुस्सील [(उद्घद) भूकृ अनि-(दुस्सील) मूल शब्द 1/1] । सीलवंतो (सीलवंत) 1/1 वि । वि (अ)= भी । सीलफलेगम्भुदयं [(सील)+ (फलेण)+ (अब्भु दयं)] [(सील)-(फल) 3/1] अब्भुदयं (अब्भुदय) 2/1 । तत्तो (अ) = उस कारण से । पुण (अ) = फिर । लहइ (लह) व 3/1 सक । णिव्वाणं (रिणव्वाण) 2/1। 1. पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया
जाता है । (पिशल: प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ, 517) 6 जिणवयणमोसहमिणं [ (जिण) + (वयणं) + (प्रोसह) + (इणं) ]
[(जिण-(वयण) 1/1] प्रोसहं (प्रोसह) 1/1 इणं (इम) 1/1 सवि । विसयसुहविरेयणं [(विसय)-(सुह)-(विरेयण) 1/1 वि]। अमिभूयं [(अमिद)-(भूय) भूकृ 1/1 अनि] । जरमरणवाहिहरणं [(जर)(मरण)-(वाहि)-(हरण) 1/1 वि] खयकरणं [(खय)-(करण) 1/1
वि] । सव्वदुक्खाणं [(सव्व) वि-(दुक्ख) 6/2] । 7 जीवादी' . [(जीव+ (प्रादी)] [(जीव)-(आदि) 2/2] । सद्दहणं'
(सद्दहण) 1/1 । सम्मत्तं (सम्मत्त)1/1 । जिरणवरेहिं (जिणवर) 3/2 । पण (पण्णत्त) भूक 1/1 अनि । ववहारा (ववहार) 5/1 । णिच्छयदो (णिच्छय) पंचमी अर्थक 'दो' प्रत्यय । अप्पा (अप्प) 1/1। गं (अ)= ही । हवइ (हव) व 3/1 अक । सम्मत्तं (सम्मत्त) 1/1 । - . 2. 'श्रद्धा' के योग में द्वितीया का प्रयोग (अथवा) कभी कभी सप्तमी
विभक्ति के स्थान पर द्वितीया विभक्ति का प्रयोग पाया जाता है। (हेम प्राकृत व्याकरण : 3-137) ।
चयनिका]]
[ 39
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106