Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
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79 परमप्पय (परमप्पय) मूलशब्द 2/1। मायंतो (झा) वकृ 1/11
जोई (जोइ)1/1 । मुच्चेइ(मुच्चेइ) व कर्म 3/1 सक अनि । मलवलोहेण [(मल)-(द) वि-(लोह) 3/1] । गावियदि [(ण)+ (प्रादियदि)] ण (अ) = नहीं आदियदि (आदिय) व 3/1 सक। एवं (णव) 2/1 वि। कम्मं (कम्म) 2/1। णिद्दिढें (णि ट्ठि) भूक 1/1 अनि । जिपरिवेहि (जिणवरिंद) 312 । 1. पद्य में किसी भी कारक के लिए मूल संज्ञा शब्द काम में लाया जा . सकता है । (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 517.)
2. देखो गाथा 70. 80 होऊण (हो) संकृ । विढचरित्तो [ (दिढ) वि- (चरित्त) 1/1) ]
विठसम्मत्तण [(दिढ) वि-(सम्मत्त) 311] । भावियमईओ [(भाविय) वि-(मइ) 1/2] । झायंतो (झा) व 1/1। अप्पाणं (अप्पाण) 2/1। परमपयं [(परम) वि-(पय) 2/1] । पावए (पाव) व 3/1 सक । जोई (जोइ) 1/1।
3. देखो गाथा 70 81 चरणं (चरण) 1/1 । हवइ (हव) व 3/1 अक । सधम्मो [(स)-(धम्म)
1/1] धम्मो (धम्म) 1/1। सो. (त) 11 सवि । अप्पसमभावो [(अप्प) -(समभाव) 1/1] । रागरोसरहिओ* [(राग)-(रोस)-(रहिन) 1/1 वि] । जीवस्स (जीव) 6/1 । अणष्णपरिणामो [(अणण्ण) वि(परिणाम) 1/11
4. देखो गाथा 33 82 जह (अ) = जैसे । फलिहमणि (फलिहमणि) मूलशब्द 1/1 । विसुखो
(विसुद्ध) 1/1 वि । परवम्वजुबो [(पर) वि-(दव्व)-(जुद) 1/1 वि] । हवेइ (हव) व 3/1 सक। अगं (अण्ण) 2/1 वि । सो (त) 1/1 5. कर्ता कारक के स्थान में केवल मूल संज्ञा शब्द भी काम में लाया
जा सकता है । (पिशलः प्राकृत भाषाओं का व्याकरण, पृष्ठ 518)
60 ]
[ अष्टपाहुए
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