Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 63
________________ 84 ग्राहारासणणिद्दाजयं च काऊण जिणवरमएण । stroat पियवा णाऊणं गुरुपसाएण ॥ 85 ताम ण णज्जइ प्रप्पा विसएसु णरो पवट्टए जाम ! विसए विरतचित्तो जोई जाणे प्रमाणं ॥ 86 परमाणुपमारणं वा परदव्वे रदि हवेदि मोहादो । सो मूढो प्रण्णाणी श्रावसहावस्स विवरीनो ॥ 87 जेण रागो परे दव्वे संसारस्स हि कारणं । तेरणा वि जोहरणों रिगच्चं कुज्जा प्रप्पे सभावणा ॥ 88 रिंगदाए य पसंसाए दुक्खे य सुहएसु य । सत्तूणं चेव बंधूणं चारितं समभावदो । . 89 fresयरयस्स एवं प्रप्पा अप्पम्मि अप्पणे सुरदो । सो होदि हु सुचरितो जोई सो लहइ णिग्वाणं ॥ 90 ते घण्णा सुकयत्था ते सूरा ते वि पंडिया मणुया । सम्मत्तं सिद्धियरं सिविणे वि रंग महलियं जहि ॥ 30 ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [. अष्टपाहुड www.jainelibrary.org

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