Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 68
________________ 98 जो (व्यक्ति) ज्ञान से गावत होकर विषयों में प्रासक्त होत है, (इसमें ) ज्ञान का दोष नहीं है, ( वह दोष) (उन) दुष्ट पुरुषों की अकर्मण्य बुद्धि का ही है । 99 व्याकरण, छंद, वैशेषिक, न्याय - प्रशासन (तथा) न्याय - शास्त्रों को जानकर और भागमों को (जानकर ) ( भी ) तुम्हारे लिए शील (चरित्र) ही उत्तम कहा गया ( है ) । 100 जीव दया, इंद्रिय संयम, सत्य, अचौर्य, ब्रह्मचर्य, संतोष, सम्यक् दर्शन, ज्ञान और तप - ( ये सभी) शील के (ही) परिवार हैं । चयनिका ] Jain Education International For Personal & Private Use Only [ 35 www.jainelibrary.org

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