Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 65
________________ 91 सम्म गुण मिच्छ दोसो मणेण परिभाविऊरण तं कुरणसु । __ जं ते मस्स रुच्चइ कि बहुरणा पलविएणं तु ॥. 92 वेरग्गपरो साहू परदव्वपरम्मुहो य जो होदि । संसारसुहविरत्तो सगसुद्धसुहेसु अणुरत्तो ॥ 93 गुणगणविहूसियंगो हेयोपादेयरिणच्छिनो साहू । __ झारपज्झयणे सुरदो सो पावइ उत्तमं ठाणं ॥ 94 अरुहा सिद्धायरिया उज्झाया साहु पंच परमेट्ठी । . ते वि हु चिहिं प्रादे तम्हा प्रादा हु मे सरणं ॥ 95 सम्मत्तं सपणारणं सच्चारित्तं हि सत्तवं चेव । ___ चउरो चिट्ठहिं प्रादे तम्हा. प्रादा हु मे सरणं ॥ 96 धम्मेण होइ लिगं रण लिंगमसेण धम्मसंपत्ती । ___ जाणेहि भावधम्म कि ते लिंगेण कायस्वो ॥ 97 सोलस्स य रणारणस्स य गस्थि विरोहो बुधेहि रिणदिवो । णवरि य सीलेण विणा विसया गाणं विणासंति ॥ 32 ] [ प्रष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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