Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 17
________________ भावों में रत तथा (२) अशुभ भावों में रत । पहिले हम प्रशुभ भावों में जीने वाले व्यक्तियों में मानसिक तनाव की प्रक्रिया को समझने का प्रयास करेंगे। अशुभ-भाव व्यक्ति में कई प्रकार से मानसिक तनाव उत्पन्न करते हैं । इनको ही प्रार्त-रोद्र ध्यान कहा गया है (४०)। अशुभ भावों से उत्पन्न मानसिक तनाव को निम्नलिखित रूप से. समझा जा सकता है। .. (१) प्रशुभ-भाव जिन इच्छात्रों को जन्म देते हैं चिन्तनात्मक बुद्धि उनको पूर्ण करने की योजना बनाती है, किन्तु सामाजिक वातावरण उनकी पूर्ति को रोकता है, क्योंकि वे कानून, नैतिकता और न्याय के विरुद्ध होती हैं । जैसे लोभ के वशीभूत होकर मायाचारी - से धन कमाना, पावश्यक वस्तुओं का संग्रह करके दूसरों के लिए . कठिनाइयां पैदा करना, लोगों को ठगने में दक्षता प्राप्त कर लेना, हिंसा से प्रांतक फैलाना, झूठ और चोरी में क्रियाशील होना, कमजोर वर्ग का दुरुपयोग करना, दूसरों को ईर्ष्यावश हानि पहुँचाना, दूसरों का अहंकारवश अपमान करना, अपने आश्रितों का शोषण करना, अपने कर्तव्य को निभाने में आलसी होना, गरीबों से दुर्व्यवहार करना, काम वासना में लिप्त होना, कलहकारी प्रवृत्तियों में रस लेना आदि -ये अशुभ भाव सभी व्यक्तियों में घोर मानसिक तनाव पैदा करते हैं, क्योंकि समाज इनकी तृप्ति में व्यक्ति की इच्छा के विरुद्ध समुचित बाधाएँ उपस्थित करता है । (२) (क) कुछ अशुभ भाव ऐसे होते हैं जिनका कुप्रभाव दूसरों पर इतना नहीं पड़ता जितना स्वयं व्यक्ति पर पड़ता है और व्यक्ति विभिन्न कारणों से दुःखात्मक संवेगों में ही जीने लगता है। इनसे उसके व्यक्तित्व पर इतना पान्तरिक दबाव पड़ता है कि वह विकासोन्मुख नहीं हो सकता है । चिन्तनात्मक बुद्धि कई बार पसहाय हो जाती है और कई बार गंभीर कठिनाइयों में फंस THAPA viii ] . [ मष्टपाहुर Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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