Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy
View full book text
________________
11 पुरिसो वि जो ससुत्तोण विणासइ सो गयो वि संसारे ।
सच्चेयणपच्चक्खं णासदि तं सो अदिस्समाणो वि ॥
.
12 सुत्तत्थं जिरणभरिणयं जीवाजोवादिबहुविहं अत्थं ।
हेयाहेयं च तहा जो जागइ सो हु सद्दिट्ठी ॥
13 जं सुत्तं जिणउत्तं ववहारो तह या जाण परमत्यो । ..
तं जारिणऊरण जोई लहइ सुहं खवइ मलपुंजं ॥
14 अह पुरण अप्पा णिच्छदि धम्माइं करेइ जिरवसेसाई ।
तह वि ण पावदि सिद्धि संसारत्थो पुणो भणिदो ।
15 एएण कारणेण य तं प्रप्पा सद्दहेह तिविहेण ।
जेण य लहेइ मोवखं तं जाणिज्जइ पयत्तेण ॥ .
6 ]
.. [ अष्टपाहुड
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 73 74 75 76 77 78 79 80 81 82 83 84 85 86 87 88 89 90 91 92 93 94 95 96 97 98 99 100 101 102 103 104 105 106