Book Title: Ashtapahud Chayanika
Author(s): Kamalchand Sogani
Publisher: Prakrit Bharti Academy

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Page 37
________________ 5 सेयासेयविदण्हू उधुददुस्सील सीलवंतो वि । सीलफलेणग्भुदयं तत्तो पुण लहइ रिणव्वाणं ॥ 6 जिणवयणमोसहमिणं विसयसुहविरेयरणं अमिदभूयं । जरमरणवाहिहरणं खयकरणं सव्वदुक्खारणं ॥ । 7 जीवादी सहहणं सम्मत्तं जिरणवरेहि पण्णत्तं । ववहारा रिगच्छयदो अप्पा रणं हवइ सम्मत्तं ॥ 8 एवं जिरणपण्णत्तं दंसरणरयणं धरेह भावेण । .. सारं गुणरयगत्तय सोवारणं पढम मोक्खस्स ॥ 9 गाणं णरस्स सारो सारो वि रणरस्स होइ सम्मत्तं । सम्मत्तानो चरणं चरणाम्रो होइ णिव्वाणं ॥ .10 सुत्तम्मि जाणमाणो भवस्स भवणासणं च सो कुरणदि । ___ सूई जहा असुत्ता गासदि सुत्ते सहा पो वि ।। [ अष्टपाहुड Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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