Book Title: Anuyogadwarasutram Uttarardham
Author(s): Hemchandracharya, 
Publisher: Devchand Lalbhai Pustakoddhar Fund

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Page 514
________________ वृत्तिः उपक्रमे नामनि० अनुयो. क्षपणा अपचयो निर्जरा इति पर्यायाः, शेषं सूत्रसिद्धमेव, यावदोघनिष्पन्नो निक्षेपः समाप्तः । सर्वत्र चेह मलधा दभावे विचार्येऽध्ययनमेवायोजनीयम् ॥ अथ नामनिष्पन्ननिक्षेपमाहरीया से किं तं नामनिप्फण्णे?, २ सामाइए, से समासओ चउविहे पं०, तं०-णामसामाइए ॥२५५॥ ठवणासामाइए दव्वसामाइए भावसामाइए । णामठवणाओ पुव्वं भणिआओ । दव्वसामाइएवि तहेव, जाव से तं भविअसरीरदव्वसामाइए । से किं तं जाणयसरीरभविअसरीरवइरित्ते दव्वसामाइए ?, २ पत्तयपोत्थयलिहियं, से तं जाणयसरीरभविअसरीरवइरित्ते व्वसामाइए, से तं णोआगमओ दव्वसामाइए, से तं दव्वसामाइए । से किं तं भावसामाइए?, २ दुविहे पं०, तं०-आगमओ अ नोआगमओ अ । से किं तं आगमओ भावसामाइए ?, २ जाणए उवउत्ते, से तं आगमओ भावसामाइए । से किं तं नोआगमओ भावसामाइए ?, २-जस्स सामाणिओ अप्पा, संजमे णिअमे तवे । तस्स सामाइअं होइ, इइ केवलिभासि ॥१॥ जो समो स OSISUSTUSASUSASEASESORES ॥२५५॥ For Private Personal Use Only Jain Education jainelibrary.org

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