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भावनीयनुपुवी बोल नामक तेही वी बार क
॥२५॥
मुर्ति पाएं जागरापुविमेागुपु) ८) सामायारी आरपीकापुर्वी १०॥ सहितं फारसपे वाकयानामचान खोना नामानुपुर्वी त-निमत्र यत्रानुष्ठातक का जा-जागरी/न-भविय
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से सस्थाननीया मात्यप्रकारे सामा-चा
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जानुपूर्वी
भरणीप्रसस्त महसी मुवी नो सूर्य ४ तथा नमी
कीवार करुन
यदि पार न जाए न
विवार के गामारपुपुवीनाम स्वानाहवदद्वारा पूवीजा २ सिकिंत जाएगसरिर भ शादी ही तितिविशिष्टं हम श्रानु पुरक्षितड-वेत्रकार पाभगवा वार ने मुहू कोराने ठना) वे गणध- त सर्व दतं तसलीम
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ही श्रासी
नातवानवियस रिरवईशाद द्वाणपुत्री 2 दुबिहा पणत्ता उचलिहिया श्राव
सांभवीरा आई कहा रमापी सूचिक सनी ने धारी
पति था पीयड (तू ते बेमा)
- जेनहि उपनिधीग स्थापी मा. ते नाणी से नत्र नेपाने ि
जाता आए व लिहिया
मेजा जसा ते उगली वस्तुनइदूक. ही त्रागाई
मिहिया यं तचणं जामा उचाणि हिया सारया तब
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