Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
मुनि श्रीसाधुकीर्ति-रचित आषाढाभूति-प्रबन्ध
भावण योगि ध्यान अध्यातम, परम ग्यान पावई तब आतम; मुनि आषाढभूति निरमाई, करत नृत्य केवल सिरि पाई... ३ धण कण कंचण रयण समृद्धउ, राजगृह पुर नयर प्रसिद्धउ; करत राज सिंघरथ सुविचक्षण, न्यायवंत सुविनीत सुलक्षण... ४ नवकल्पई पुरि पुरि विहरंता, श्रीधर्मरुचि सूरि तिणि परि पत्ता; तासु सीस छइ जुगहपहाणू, नामि अषाढभूति गुणठाणू... ५
- सं. अनिला दलाल
॥ दूहा ॥
[आषाढाभूतिनुं कथानक जैन परम्परामां घणुं प्रसिद्ध छे. ते कथानकने विषयवस्तु बनावती अनेक रचनाओ पण उपलब्ध थाय छे. तेमांथी अक रचना अत्रे प्रकाशित थई रही छे.
प्रस्तुत रचना खरतरगच्छीय वाचक मतिवर्धननी परम्परामां थयेला दयाकलशना शिष्य साधुकीर्ति मुनि रची छे. संवत १६२४ नी विजयादशमीना दिवसे योगिणीपुरीमा प्रस्तुत रचना थई छे. श्रीमालवंशीय पापडगोत्रीय शाह तेजपालनी विनन्तिथी आ कृति रचाई होवानो कर्ताओ उल्लेख कर्यो छे...
___ कृतिमा दूहा, चतुष्पदी, छप्पय, घत्ता, अडिल्ल, झूलणा, सोरठा जेवा अनेक छन्दो प्रयोजाया छे, कृतिमा गुरु अने आषाढाभूति वच्चेनो तथा आषाढाभूति अने नटपुत्री वच्चेनो संवाद प्रधानपणे निरूपायो छे. समग्रपणे जोतां कृति रसाळ अने सौष्ठवपूर्ण जणाय छे.
__प्रा. श्री अनिलाबहेन दलाले प्रारम्भिक प्रयास होवा छतां, घणा परिश्रमपूर्वक आ कृति सम्पादित करीने मोकली छे. तेओओ जे प्रत परथी सम्पादन कयु हतुं ते ला.द. विद्यामन्दिरना हस्तप्रतभण्डारनी नं. ४७२८ वाळी प्रतनी Xerox पण साथे मोकली हती, तेना आधारे यथाशक्य संशोधन करीने अत्रे वाचना प्रकाशित करी छे.]
रूपपराव्रत मोहनी, बहुविध लबधि भण्डार; गुरु आदेसई संचरइ, विहरण नयरि मझारि... ६ सोधउं ईर्यासमति, गज जिम गति माल्हंति; विश्वक्रमा नट धवलगृह, तुंग देखि तिहां पत्त... ७ विहरि मुदक जाण्यउ इसिउं, मोटउं गुरुनई अह; लबधि अजीरणि चितवई, दूजउ विहरठं तेह... ८ माया करि विद्यासु धरि, रूप कुब्जनउ कीध; सुंदरि तिणि मंदिरि वली, धर्मलाभ जइ दीध.... ९
|| जाति ॥ तिहीं धर्मलाभ जइ दीघउ, मोदक लोभई वली लीधउ; उवझाय तणु इहां भाग, त्रीजउ लेवा हिव लाग... १० तिणि वडउ रूप निरमायउ, पुण त्रीजउ मोदक पायउ; नान्हा चेलाऊं अहु, विद्या साधी वलि तिहु.... ११ सुरकुमर समान अनूप, कीधउ योवनमइ रूप; ते जि नटुई उत्तम भावइ, चुथउ मोदक विहरावइ... १२ बइठउ नटउ गउखि विनोदइ, कौतुक करि चित्त प्रमोदइ; रिषि रूप करंतउ दीठउ, तब लोचनि अमीय पइठउ... १३
॥ वस्तु ॥ मनिहि चिंतइ मनिहि चिंतइ ताम नट अम, यह नर्तक हुइ सुंदरु, गुणनिधान सोभाग सुंदर; तब मुनिवरकुं इम भणइ, सामि अह तुम्ह तणउ मंदिर...
ॐ नमः श्रीजिनाय
॥ ढाल सिधिनी ॥ सुखनिधानु जिनवरु मनि ध्याई, अनु सारद समरणि लिउ लाइ; गाइसु गुण आषाढ मुणीसर, जसु चरित्र सब लोक सुखंकर... १ दान सील तप जप मण मोहई, व्रत सुनीम भावण करि सोहइ; वणइ करउ तिन भावविहुणी, जिमी होइ रसवती अलूणी... २

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