Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 41
________________ जून २०१५ ॥ चउपई ॥ चाल्यो कुमर अति सुविचार, लीधा पांच तेजीय तुखार, चारे नारी साथै लेय, महावन मांहि पुहुतुं तेय.... बार जोयणनी अटवी होय, तिहां मनुष्य न पइसइ कोय, कुमर पुहुतो ते वन मांहि, चालइ मारगि दह दिस बाहि... ६ दिन आथमीयों रयणी थई, लीयो वीसामो वडथडि जई, बांध्या घोडा तरुवर तलेय, सूती नारि निंद्र भरि तेय... ७ जाग्यो कुमर खडग करि धरी, अणें अवसरि दोय विद्याधरी, सारंगें चित धरइ मन माहि झलक तेजे सूरज प्राहि... ८ दीठो कुमर वनमांहे जिसइ, विद्याधरी मन हरखी तिसइ, असुं पुरुष जड दीठो आज, तउ सीधा मनवंछित काज... ९ ॥ वस्तु ॥ कुमर देखी कुमर देखी, वनह मझारि, विद्याधरी इम चितवs, भाग्यवंत नर अछइ कोई, सुरपति नरपति जाणओ, मनुष्य रूप अहवा न होई, हिव आणि अपहरि लीजीयइ, कीजइ भोग विलास, जीवतव्य फल अह छइ, पूरीजइ मंन आस... १० ॥ दोहा ॥ ईम जांणी विद्याधरी, अघोर निद्रा तिण दीध, कुमर निद्रावसि थयो, तउ ततखिण तिण लीध... ११ विमाने बइसारी चली, कुमर न जाणि भेउ, गिर वाढ सुहामणुं, हिवइ ते आव्या बेउ... १२ इणि अवसरि वन माहिली, जागी नारी च्यारि, कंत न देखई आपणुं, झूरइ मनह मझारि .... १३ ७७ ॥ ढाल ॥ बिरहनी नारी जागी इम भणई ओ, नही अम्ह दीसइ कंत तूं, नाह तूं किहां गयो अ, मेलीय वनह मझारि तूं...१४ नाह तुं किहां से आंकणी. अम्हे गाढी अभागणी ओ, सुख नवि सरज्युं आज तूं, के अम्हे करम बहु करया अ, के अम्हे दीधा आल तूं... १५. नाह तुं किहां. ७८ अनुसन्धान-६७ के अम्हे तप करी खंडीया अ, फोडी सरवर पाल, तूं, के अम्हे जीव विणासीया अ, मोडीय तरुवर डाल तूं... १६. नाह तुं किहां. के अम्हे बाल विछोहीया अ, पामिय दुःख अपार तूं, वादली पूछूं वातडी अ, कहे कहां गयो अम्ह कंत तूं... १७. नाह तुं किहां. वनदेवति तुम्ह वीनवुं, किण अपहरीयो अम्ह कंत तूं, ईम विलवतां रातडी ओ वीतीय जसु प्रभाति तूं... १८ नाह तुं किहां. ॥ चउपइ ॥ ग्रह विहसी उग्यो बली, थई नारि विरह आकुली, नाह नाह करि दह दिस जोय, साद करी सर लई सर रोय ( ? )...१९ करम उदय सहि आव्या आज, जिम दवदंती थई नलराज, आज अम्हारइ ते पर होय, करम आगलि नवि छूटइ कोय... २० कीजइ सुध को वसती जई, साहसपणुं मन आण्यो सही, तुरी लेईनइ चालइ नारि, पुहुती दसरथ नयर मझारि... २१ राज करइ तिहां पापी राय, लोपइ धरम करइ अन्याय, न्याय रीति नवि जांणइ ओ किसी पापबुध तसु हीयडइ वसी.... लोकें दीध अन्याई नाम, पापीरंजण ते सव गाम, २२ दंड लोक करइ आबाध, पापी पालइ दूहवइ साध... २३ दीठी नारि अतिरूपि सार, पापबुध मन धरइ गमार, करूं अंतेडर अहनइ आज, तउ जणनइ कहइ छंडी लाज... २४ च्यारे नारि से तुम्ह अपहरो, अंतेउर माहि पुहुती करो, रूपवंत नई रूडी सही, असी नारि किहां दीसइ नही... २५ तउ ततखिण तिण साही नारि, लेई गया राजभुवन मझारि हाहाकार नगर माहि थयुं महाजननई मन कोप ज भयुं... २६ हिव छांडीजइ अहनो वास, दिन बिहु मांहि पडसे त्रास, रावण राय लंकानों धणी, ते रामइ कीधो रेवणी... २७ गर्द भिल्ल उजेणी भूप, पापि पडीयो नरगह कूप, सरसती सती अणइ अपहरी, घणो विगूतो पापि करी... २८ १. वगोवायो

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