Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
बेहू बाहें सोहइ बहिरखा, झलकह हीरा तिहां नवलखां, करि चूडी झलकइ रूयडी, आंगुलीयई झलकह मुंदडी... ५५ कटमेखला पाों नेउरी, जाणे हरिनंदन-अंतेवरी, रूपि रम्भा समवडि होय, जे देखी रंजइ सुरलोय... ५६ चंद्रवयणी मृगनयणी जिसी, बेउ भमहि रेसींगणि होइ तिसी, नासां सोहइ सुकचंचु समान, अधररंग प्रवालवान... ५७ दाडिमबीज सरीखा दंत, कमल सरीखा ते नेत्र ज हुंति, स्तन उत्तंग अंगि पातली, चालें विविह विबुध परि वली... ५८ कृसोदरी जंघ सुविसाल, नवल वेस नवरंगी वाल, पातली चामरिं कर धरी, कुमरि बोलाव्यो विद्याधरी... ५९ चतुरपणइ चालइ चमकती, गयगमणी रमणी ते हुती, मधुर वाणि मुखि भाखि तेह, नयणबाणि मूकइ तव वेह... ६० तव मुख बोलइ रंग रसाल, स्वामी आस पूरो सुविसाल, तुम्हे विद्याधरी सहि तूठी अम्हे, विषयतणा सुख भोगवो तुम्हे... ६१ जीवतव्य फल ओ संसार, लही अवसरि भोगवीओ नारि, जोवनवय तुरणापण सही, लाज म आणों अवसरि लही... ६२ कुमर न बोलइ वलितुं किसुं, मुनिव्रत आदरीयु जिसुं, संवर खेडो तिणें करि धरी, पंचइंद्री राख्या वसि धरी... ६३
जलसुय तस सुय तास सुय, तस रिपु पीडइ देह, क्रिपा करो म्हां उपरी, पीड नवारो ओह... ६८ मुंह मांगसि ते पूरसुं, देसां विद्यासार, अम्हे बे नारी ताहरी, तूं नहचइ भरतार... ६९ अम करतां निस समइ, आवीयो नारीकंत, प्रछन गति बाहिर रही, प्रीछ्यो सयल वृतंत... ७० सयल चरित्र देखी करी, विद्याधर पभणेइ, जे नर नारी वीससें, तेहनूं घर विणसंत... ७१ इसी वात जाणी करी, चित्त चमक्या तेह, साहसीक नर ओ भलुं, सील न मूकइ जेह... ७२
|| चउपई ॥ विद्याधर इम चिंतइ सही, जोq हजी प्रछनों रही, अजीय वात वीचारये किसी, निरखइ नारीचरित्र मन हसी... ७३ विद्याधरी विविध परि घणी, कला प्रगट मांडइ आपणी, इम करतां नवि दीठउ बंध, कोप चडिउ नारी कामंध... ७४ सुणिहो नर तूं अछइ अजाण, कह्यो करि अम्ह कइ चूकसि प्राण, वडीवार ओम कहतां हुई, तउहे वलतूं बोलइ नही... ७५ ते निसुणी कुमर इम भणइ, पोतइ काम नहीं अम्ह तणइ, वात कहुं तउ लाजूं सही, कह्या विना पण न सकुं रही... ७६ विद्याधरी कहइ अम्हे सुजाण, अणहूंतुं उपजावू माण, जे नर अन्न निरंतर जमि, नारिरूप देखी ते भणइ... ७७ नही पुरुषारथ अहनई सही, ओह वात पण साची कही, रूपइ रूयडो मयण सरीस, अह वात जाणइ जगदीस... ७८ च्यारि पुहुर अम्ह अंगे करी, दीधा आलिंगन आघो धरी, हाव भाव बहु कीधा पछइ, जाणो पाहण ओनर अछइ... ७९ इम करतां नवि लागो मरम, स्त्री रूठी जव भागो भरम,
तव नारी बुंवारव कीयो, चोर चोर कहि बोलावीयो... ८० १. आनो अर्थ अस्पष्ट रहे छे. २. छूपी रोते
हावभाव बहु प्रेमरस, करई ते सार शृंगार, वलतुं नर बोलइ नही, जाणों अछइ गमार... ६४ ते जाणी विद्याधरी, अंगे लागी बेउ, लाजह लोपी मन तणी, मयण जगावेइ तेउ... ६५ पग तलासइ करि करी, बोलावई मनरंग, लाज म आण सनाहला, लेइ उरि हीइउछंग... ६६ विषयबुध अम्ह ऊपनी, संतापी निसदीस,
औषध करो सुजाण प्रिय, पूरो अम्ह जगीस... ६७ १. भ्रमर २. धनुष्य ३. तरुणपणुं

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