Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 75
________________ जून - २०१५ श्री दशवैकालिक सूत्र के व्याख्या ग्रन्थों की हमारे द्वारा प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियाँ |संज्ञा भण्डार का नाम क्रमांक ताडपत्रीय प्रति का व्याख्याग्रन्थ /कागज लेखन काल हसुटी-१ | पाटण - संघवी पाड़ा का भण्डार | पातासंपा। ताड़पत्रीय । वि.सं. ११८८ दशवैकालिकसूत्र की सुमतिसाधुकृत टीका हसुटी-२| कोबा-आचार्य श्रीकैलाससागरसूरि | २०६६ कागज वि. की १६वीं सदी ज्ञानभण्डार |हसुटी-३] " " " १०६७७ कागज वि.की १७वीं सदी हसुटी-४ | पूना - भाण्डारकर ओरिएन्टल भांका वि.सं. १७४५ | रिसर्च इन्स्टिट्यूट हतिटी | कोबा - आचार्य श्रीकैलाससागर ६७६७५ वि.सं. १४८९ दशवैकालिकसूत्र की सूरि ज्ञानभण्डार श्रीतिलकाचार्यकृत टीका हरटी २५८८४ वि.सं. १४८१ रत्नशेखरसूरिकृत टीका (हरिभद्रसूरिकृत टीका संक्षेपरूप विवरणोद्धार) | पूना - भाण्डारकर ओरिएन्टल भांका वि.सं. १५१० अज्ञातकर्तृक, हरिभद्रसूरि रिसर्च इन्स्टिट्यूट १२२ कृत बृहवृत्ति की अवचूरि २६२ १४५ १४६ श्री दशवकालिक सूत्र के व्याख्या ग्रन्थों की हमारे द्वारा प्रयुक्त हस्तलिखित प्रतियाँ संज्ञा भण्डार का नाम क्रमांक ताडपत्रीय प्रति का व्याख्याग्रन्थ /कागज लेखन काल हस पूना - भाण्डारकर ओरिएन्टल भांका वि.सं. १५१० अज्ञातकर्तृक अवचूरि रिसर्च इन्स्टिट्यूट १४१ 'अक्षरार्थगमनिका' हसदी | कोबा - आचार्य श्रीकैलाससागर | ११६९४ वि. की १८वीं सदी उपाध्याय समयसुंदरकृत सूरि ज्ञानमन्दिर दीपिका हस्तलिखित प्रतियों में कई स्थलों पर पहले जो पाठ लिखा रहता है बाद में कोई उस पाठ में संशोधनपरिवर्धन कर देता है, ऐसे प्रसंगो पर उस प्रति के मूल पाठ तथा संशोधित पाठ को दर्शाने के लिए उस उस प्रति की संज्ञा के आगे 'मू.' और 'सं.' इन शब्दों का प्रयोग किया गया है। जैसे - लासं. यानी 'ला' संज्ञक प्रति का संशोधित पाठ इसी प्रकार कोमू. २ यानी 'को.२' संज्ञक प्रति का मूल पाठ (उपर्युक्त उदाहरणों के लिए देखे पृष्ठ क्रमांक १२६) अनुसन्धान-६७

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