Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

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Page 42
________________ जून - २०१५ अनुसन्धान-६७ सासनदेवत आपइ हार, ओ पहिरजउ तुम्ह सिणगार, जे नर कुदृष्टि करी जोइस्ये, ते निहचइ आंधो होइस्ये... ४२ हार देईनई देवि पहूत, कुमरी मनि आणंद बहूत, हिईया मांहि आरति धरइ, धरमध्यान वसेफे करइ... ४३ राजा पापबुध बहु धरी, आव्यो ततखिण तिहां संचरी, आगइ नयण न देखइ सही, विलखवदन थयो पाछउ थई... ४४ हिव सही जास्ये अहनों राज, दीजइ सीखामणि अहनि आज, तव महाजन सव नगर ज तणो, राजभुवन चाल्यो अति घणो... २९ तेहमांहि धुरि जगसी जयवंत, भीमसेन अनि श्रीवंत, खेतो पूनो पातू पहिराज, मनजी मांडण नई महिराज... ३० जावड भावड भूचर भीम, राणो रणधो खेतो खीम, पूनो पीथो नई पदमसी, भोजो काजो नई राजसी... ३१ वीरो धीरो नई धरमसी, आसड पासड नई करमसी, धांधो धीधो नई धनराज, मानों मांडण नई सिवराज... ३२ चाल्यो महाजन धरीय विचार, जई अबलानी कीजइ सार, राजभुवन जइ भेट्यो राय, स्वामी म करिओ वडो अन्याय... ३३ रवि ऊमें जउ होई अंधार, 'ससिहर बरसइ जो अंगार, जउ तूं चूकसि देव बिचार, तउ प्रजा तणी कुण करिसे सार... ३४ तूं सही मोटो नई मोभीक, अणी वाति सही थासो फीक, अबला छोडि कह्यो अम्ह मान, पछइ उरतउ करसिं 'निरवाणि...३५ तिण वातें ते कोप्यो राउ, सीख न मानी वाज्यो वाय (?), जे महाजन बात जि कही, भर्या घडा ऊपरि वहि गई... ३६ तव ते महाजन पाछो वल्यु, हिव रायनई बोलावू टल्यु, सीख न मानी अणि आपणी, सही राजा थास्ये रेवणी... ३७ हिव चिंति नारी मन माहि, सासनदेवति मन आराहि, पुन्यप्रभावे परतखि हुई, मागि मागि वछ तूठी सही... ३८ नारि भणइं तूं तूंठी मात, कहु किंहा कंत अम्हारी बात, देवी भणइ ते वृतांत, विद्याधरी हों तुम्ह कंत... ३९ होस्ये भेट म करो उचाट, मास दीह तुम्ह जोज्यो वाट, राजरिद्ध स्त्री लहस्ये धणी, करस्ये सार बहिली तुम्ह तणी... ४० हरखी नारि भणइ सुणि माय, अणें नयर अन्याई राय, दुष्ट बुध अम्ह उपरि धरइ, पापी पाप भणी नवि डरइ... ४१ श्रीगजसिंघकुमारनु, सांभलो चरित विख्यात, विद्याधरीओ अपह, तेहनी ते सुणो वात... ४५ गिर वइताढे लेई गई, पुहुति निय घर मांहि, ओक संपि बिन्हे थई, वात करई उछाहि... ४६ कंत नहि घरि आपणो, गयो 'वदेसें तेह, तिहां लगि आपण अहसुं, रंग करीस्यां बेहि... ४७ इम जाणी विद्याधरी, जगाव्यो कुमार, हावभाव बहु प्रेमरस, करई ते सार शृंगार... ४८ ॥ चउपइ ॥ जाग्यो कुमर मन चितइ असुं, हुं इहां आव्यो ते कारण किसं. हुं वन मांहि हुँतो सही, मुझनई इहां कुण आण्यो लई... ४९ आकारइ करि जाण्यो सहु, नारिचरित्र इणे मांड्या बहुं, इम जाणीनई मन आदर्यो, 'सीलसनाह सबल तिण करयो...५० सास्त्रवात तिण हियडइ धरी, रह्यो कुमर निहचल मन करी, विद्याधरीयइ धर्यो मन नेह, मधुर वयण बोलाव्यो तेह... ५१ हावभाव नारी मन धरि, अबला वेस नवरंगी करई, पहिरणि फाली वाली तणइ, रंग्यो वस्त्र ऊपरि ओढणइ... ५२ उरि कंचूवो कसण बहु कसई, मयणराउ जाणो तिहां वसइ, सोवन झाल फलका सार, उरि सोहइ अकावलि हार... ५३ नलवट टीली छइ वाटली, पहिरइ सोवनमइ राखडी भली, ग्वेणिदंड करइ वासगनाग, सइथो जिसो मयणनो माग... ५४ १. विदेश २. शीलरूपी बख्तर ३. चोटलो १. चंद्र २. ओरतो, पस्तावो ३. नक्की, खरेखर

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