Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
अम्ह वाट जोवंत भलई वछ आयउ, गुणगणधीरिम मेर, चेला तुं विनय विवेक विचक्षण, काई लागी वडवेर; हम कारण आखि सवे विधिसुन्दर, सीससिरोमणि जाण, विद्या बहु पात्र विसेषत जाणी, आदर मधुरी वाणि... ४५ वयणे तिणि रीस चटक्कि चड्यउ रिषि, लहुया बोलई बोल, अलिवृत्ति घराघरि भिक्षा लेवी, तुम्हनउ छई सिरि टोल; बलवंत गुरु गुणवंत परीसह, जीपेवा बावीस, वछ भिक्षा अकि परीसहि भिद्यउ, भाखई सुगुरु निरीस... ४६ राता मतवालसु सीष न मन्नई, लोपई लज्जाचार, गुरु मेर विवेक विनई विधि छंडई, बूझइ नही गमार; रिषि रीसभरई त्रडक्यउ तब जंपइ, मूंकी मनकी लाज, हितसीख तुम्हारी ओ घरि राखउ, आज विषय हम काज... ४७
॥ गाथा ॥ मयणवसगस्स निच्चं, वाहिविघत्थस्स तह य मत्तस्स; कुवियस्स मरंतस्स य, लज्जा दूरुझिया होई... ४८
|| सिंधी गउडी ॥ अंगुलि मुखि गुरु सिर धुणई, सीसवयण सुणि कांनि; बलि जाउं जिन भाखियई, ओ सिद्धंतनइं मानो रि... ४९ वछ व्रत नवि भंजीयई, चउथउ ब्रह्म विसेषो रे,
विषय न रंजीयई..... आंकणी मदन विषइ नवी गंजीयई, साम्हा जे झूझार; ते नरनारी दास हुँ, चरण नमुं ब्रह्मधारो रे... ५० वछ... विसहर डंक्यउ नवि मरई, जई गारुड होईयइ नयणे जे नर डंकीया, विरला जीवइ जोइ रे... ५१ वछ.. भलपण कहि किमह मिलई, नकुल अनई विसधार; नरनारी ईकठा रहई, सील न हुयई तिण वारो रे... ५२ वछ... नाचई हंस मिनी सिरई, कमल शिलातलि जांमः । नारीनर मिलिवई हवई, सील अखंड जु ताळो रे... ५३ वछ...
जाणउ कुंड क्रिसानुनउं, नारी तणउ जुरूप; पुरुष पतंगी पडि मरई, ओ छई विषय सरूपो रे... ५४ वछ... बोधई गुरु मधुरी गिरा, सुणि वछ तुं सुविचार छंडी जईओ प्राणडा, खंडायई नहु आचारो रे... ५५ वछ... सुक सेवाल आहार ल्यई, मासखमण तप पाख; तापस सीलई चूकिया, वेध्या नारि कटाखो रे... ५६ वछ... हरि जीपई कुंजर दमई, अहिवसि करइ विनाणि; भडिवायइ नारी तणइ, धूजई ते सपराणो रे... ५७ वछ... पवन जेम चंचल मन, वईरी विषई विकार; रहनेमि प्रीति फंदई पड्यु, अउर कुण मोह्या न नारि रे... ५८ वछ... गुरु जाणइ विहरण दोहिलउ, सहिवउ परम अपार; सीस तणउ मन तिणि फिस्यउं, न जाणइ अंतर सारो रे... ५९ वछ... सीस भणइ गुरु संभलु, विषमु संजमवास; सुख मीठां कमला लही, भोगवउ बारह मासो रे... ६० वछ... दान भोग लीला करई, ते नर सफल संसारि; कमला फल सुख भोगिवलं, सो मुझ लागई उदारो रे... ६१ वछ... सीष सुहित सहगुरु भणई, सरस वचन वईराग; परमानंद लय पाईयई, साचु संजम मागो रे... ६२ वछ... उपसमरसमई झीलिवउ, मुनिवरकुं सुख जेह; राग दोस भरपूरीयउ, चक्रवतिकुं नवि तेहो रे... ६३ वछ व्रत नवि भंजीयई, चुथु ब्रह्म विसेषो रे,
विषय न रंजीयई..
|| गाथा ॥ तणसंथारनिसन्नो, मुणिवरो भट्ठरागगय(मय)मोहो; जं पावई मुत्तिसुहं, कत्तो तं चक्कवट्टी वि... ६४
॥ सोरठा ॥ श्रावणि मासि उल्हास, इक संजमि रस लाईयई; करि तुं योग अभ्यास, सुपंचेइंद्री वसि करी... ६५

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