Book Title: Anusandhan 2015 08 SrNo 67
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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जून - २०१५
अनुसन्धान-६७
भणइ नारि तूं वा(बा)वन वीर, मुझ दुःख भांजसि साहस धीर, सूली घालुं माहरो कंत, भूखो तरस्यो बहु हुवंत... ३१ मई आण्यो छई ओ कंसार, हुं न सकू देई आहार, ऊंची सूली आवडुं नही, तिण कारणि दुखाणी सही... ३२ वीर भणि मुझ आवो खंध, दइ आहार चडी मुझ कंध, कुमर जाण्यो सहु साचं अय, 'लछनौं तउ नवि जाण्यो भेय... ३३ ते नारी तिण खांधइ करी, सूली आगलि ऊंची धरी, ते सघलुं मांड्यो पाखण्ड, मृत्यक करिवा लागी खण्ड... ३४ करइ आहार नि कलकलइ, जाणइ ओ नर किमही छळइ, कुमरे अहवं देखी जाम, पग साहीनई नाखी ताम... ३५ छेद्यो नाक लेइनि छुरी, सीखामणि इम दीधी खरी, बुंब करती नासी गइ, अणी वाति ते निकटी' थई... ३६ ओ छलतां हुं साम्ही छली, इसी बुध हिव न करे वली, घणा घसाव्या घाठी तेह, साहसीक नर साचुं अह... ३७ मुजसिउं वयर कीयो इणि आज, हूं जइ ॲ छंडावं राज, कपट रच्युं कुमरसिउं घj, तेह वात सुणो हुं भणु... ३८ कीधुं तेणे कुमरनुं रूप, राउ न जाण्यो तेह सरूप, इसूं कूड ते देवी करी, गइ अन्तेवरमांहि संचरी... ३९ पछिम राति जाग्यो भूप, दीठं कुमरह तणो सरूप, राणी सरसो रमतुं दीठ, राजा हीयडि कोप पईठ... ४० ऊठ्यो कर लेइ करवाल, राय भणई ओ मारु बाल, पापी पाप न जाणइ वात, आणि कीधो मोटो उतपात... ४१ कोप धरीनई चलीयो जिसइ, कुमर रूप नासी गयो तिसइ, नकटी देवीओ कीधुं सहू, राजा हियडइ कोप्युं बहू... ४२ कूड करीनइं नासी गई, रयणी गई प्रह वेला थई, तउ राों बोलायो प्रधान, मारि कुमर म धरिजे कान... ४३ तव बोलइ वलतुं मंत्रीस, असुं कोप काइ करो जगीस,
सुगुण सरूप सुलखिण अह, कुविसन नव सइ अहनि देह... ४४ १. लक्ष्यनो २. मृतक ३. नाक विनानी
राय भणइ तूं म करि वखाण, काढि काढि कइ चूकसि प्राण, आप जंघ किम उघाडीओ, जेणी बात साम्हां लाजीओ... ४५
॥ वस्तु ॥ वयर पोखी वयर पोखी, गईय ते नारि, तव कुंवर घरि आवीयो, अह वात काई न जाणइ, परधाने बोलावीयो, तुझ उपरि राय कोप आणइ, कुमर भणइ कारण किसुं, जे रूठो मुझ तात, जउ जईओ तउ जीवीओ, नहीतरि होसी घात... ४६
॥ चउपई ॥ भणइ प्रधान कुमर सुणि वात, ताहरु जस छइ देसविख्यात, रायनों कोप हूवो सा भणी, तूं कीधो हूं तो राजनों धणी... ४७ कुमर भणइ नवि कीयो विणास, मई न विलोप्यो किहनउ ग्रास, को वयरी आवी नि मिल्यु, तिण वयणे राजा मन टल्यु... ४८
॥ गाथा ॥ तं नत्थि घरं तं नत्थि राउलं, देवलं पि तं नत्थि, जत्थ अकारणकुविया, दोतिनि खला न दीसंति... ४९
पधरडइ इम कंति कडी, परि छिदेडे अय संति(?), सर्पह दुर्जन दो समा, ओम विसास म करंति... ५० दुर्जन पाहें अति भलो, काल डसइ इकवार, दुर्जन पग नित डसइ, जोइय च्छोड अपार... ५१ इम जाणीनि चालीयो, लीधो मोर सुचंग, जंत्र प्रभाविं ऊडीओ, अम्बरे गयो उतंग... ५२
॥ चउपई ॥ चाल्यो कुमर ते महाबलवंत, करि हथियार सार झलकंत, महावनमांहि पुहुतो जिसइ, सिधपुरुष इक दीठो तिसइ... ५३ ते देखी कुमर ऊतरइ, विनय करी साम्हों संचरइ, ततखिण कुमरि कीयो प्रणाम, आदर वयण बुलाव्यो ताम... ५४

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