Book Title: Anusandhan 2013 09 SrNo 62 Author(s): Shilchandrasuri Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad View full book textPage 5
________________ ब्रह्मसूत्रना प्रथम सूत्रमा 'अथातो ब्रह्मजिज्ञासा' एम कहेवामां आव्यु, ते पण, ऋषि द्वारा थता 'ब्रह्म-शोधन'नो पायो जिज्ञासा होवार्नु ज सूचन करे छे. जिज्ञासुना प्रश्नो तेमज विमर्श-बन्ने दमदार होय छे; छीछरां के क्षुल्लक नहि. अने तेवा प्रश्नोना उत्तरमा जे समाधान अथवा अर्क सांपडे, तेने 'संशोधन'थी ओर्छ कशुं ज न कही शकाय. आपणा आगेवान शिक्षणविद् डॉ. विद्युत् जोषीए ताजेतरमां ज लखेला एक मजाना लेखमां, भले जराक जुदा सन्दर्भमां, पण आ मुद्दो बहुज तार्किक रीते आलेख्यो छे. तेमना शब्दोमां ज ते वांचीए : "जेने संशोधन करवू होय तेमणे प्रश्नो करता अने वैज्ञानिक रीते विचारता शीखवू पडे. जो तमे वैज्ञानिक रीते विचारता हशो तो ज वैज्ञानिक संशोधन करी शकशो. आम जोईए तो संशोधननी तालीम ए बौद्धिक विचारनी तालीम छे. लागणीथी नहीं पण बुद्धिथी विचारवानी तालीम एटले रेशनालिझम अने अनुभवजन्य साबिती शोधवानी तालीम एटले एम्पिरियसिझमनी तालीम." (दिव्य भास्कर, ता. ७ जुलाई, २०१३) लागणी एम कहे के महान् ग्रन्थकारे आ शब्दो लख्या छे तेने, अन्य आधारभूत प्रमाणोथी ते खोटा पुरवार थतां होय तो पण, आपणाथी भूसाय केम ? बदलाय केम ?; एमां आपणे तेमनो अपराध को न गणाय ? त्यारे बुद्धि एम कहेशे के आटला महान् आचार्य, आवं असंगत लखे ज नहि. आ देखाय छे ते पाछळना कोईना लेखनदोष के अन्यथा समजणने कारणे ज थयुं होय; मूळ व्यक्ति आवं न करे. परिणामे, साधार थनार आवा सुधारा, संशोधननो दरज्जो तो पामे ज, साथे साथे, ग्रन्थकारनी भावना अने बौद्धिक क्षमताना पुनःप्रतिष्ठापननो सुयोग पण, ते संशोधन करनारना हाथे सर्जाय छे. आथी ज, जिज्ञासा, तन्मूलक प्रश्नो, अने पछी फलरूपे सांपडतां तारणो - आ क्रम प्रत्येक संशोधके स्वीकारवो जोईए; अने आ क्रमना कारणे ज, संशोधनने प्रश्नविद्या तरीके ओळखाववामां औचित्य समजाय छे. - शी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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