Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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५४
धर्मरत्नदुर्लभत्वम्
सं. मुनि कल्याणकीर्तिविजय
प्राञ्जल प्राकृतभाषामय आ कृतिना रचयिता शासनसम्राट - परमगुरुआचार्य भगवन्त श्रीविजयनेमिसूरीश्वरजी महाराजना परमविद्वान् शिष्य प्रवर्तक मुनि श्रीयशोविजयजी छे. मूळे तेओ पाटणना अने जातिए प्राय: करीने भरवाड हता. नानपणमां ज अनाथ थई गयेला तेमने आठेक वर्षनी उंमरे अमदावादना कोई श्रावक पू. शासनसम्राट पासे मूकी गयेला.
तेमनो क्षयोपशम ते वखते एटलो मन्द के मात्र नमस्कार मन्त्र शीखतां तेमने छ महिना लागेला. तेमणे पू. शासनसम्राटने, पोताने दीक्षा आपवा माटे, घणी विनन्तिओ करेली, परन्तु पू. शासनसम्राटे तेमने समझावीने ना कहेली. पण एकवार बीजा कोई गृहस्थने दीक्षानी मंजूरी आपवाना प्रसंगे तेमणे दीक्षा लेवानी हठ पकडी. तेथी पू. शासनसम्राटे तेमने पोताना ज्ञानबळथी योग्य जाणी दीक्षा आपेली ।
अनुसन्धान-५०
दीक्षा बाद, पू. शासनसम्राटना आशीर्वादथी तेमनो क्षयोपशम एटलो खील्यो के तेओ दररोजना १०० श्लोको कण्ठस्थ करी शकता हता. तेमणे ज्ञाननी दरेक शाखामां ऊंडुं अने तलस्पर्शी अध्ययन करी अजोड अने अनुपम विद्वत्ता प्राप्त करी हती. साथै ज संस्कृतभाषा पर तेमनुं एटलुं प्रभुत्व हतुं के कोईपण विषय पर तेओ, पण्डितो अने विद्वानो साथे श्लोकबद्ध चर्चा करी शकता हता. तेणे स्तुतिकल्पलता, प्रवर्त्तक यात्राप्रवास व. ग्रन्थोनी रचना करी छे अने अनेक संस्कृत - प्राकृत काव्योनी रचना करी छे.
तेओ, क्षयरोग लागु पडी जवाथी बहु नानी उंमरमां ज, महाव्रतोना आलापक सांभळतां समाधिपूर्वक काळधर्म पाम्या अने जैनशासनने एक आशास्पद महाविद्वान् साधुभगवन्तनी खोट पडी.
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आ कृतिमां तेमणे धर्मरूपी रत्ननी प्राप्ति जीवने केटली दुर्लभ छे ते चिन्तामणि रत्नना दृष्टान्त सह जणाव्युं छे. तेमां प्रथम सात श्लोकमां धर्मनुं माहात्म्य बताव्युं छे. त्यारबाद ८ थी ४७ श्लोक सुधी, चिन्तामणि रत्ननी प्राप्ति केटली दुर्लभ छे ते देखाडवा माटे श्रेष्ठिपुत्र जयदेव अने पशुपालकनुं दृष्टान्त
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