Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 159
________________ १४६ अनुसन्धान-५० सुगम अने सुपाठ्य छे. ___डॉ. नगीनभाईले लखेली प्रस्तावना भारतीय तत्त्वज्ञानना अभ्यासीओ माटे अक उपहार समान छे. मूळ ग्रन्थ, ग्रन्थकार तथा टीकाकार विशे तो तेमणे अमां विगते विचारणा करी ज छे, उपरांत आ ग्रन्थमा चर्चित दर्शनोनी रूपरेखा आपी छे अने आ ग्रन्थमां नथी समावायां अवां उत्तरकालीन भारतीय दर्शनोनो परिचय पण आप्यो छे. आ व्यापक-विश्लेषक प्रस्तावना थकी आ ग्रन्थने नवं परिमाण सांपडे छे. ग्रन्थ, टीका तथा अनुवाद त्रणेय अधिकारी जनना हाथे मावजत पाम्या छे - आ प्रकाशननी विशेषता छे. आ अनुवाद द्वारा गूर्जरगिराना ग्रन्थभण्डारमा ओक रत्ननो उमेरो थयो छे अने भारतीय दर्शनशास्त्रोना अभ्यासी वर्ग माटे अक अपरिहार्य छतां उपकारी बने अर्बु साधन उपलब्ध थयुं छे. पुस्तक मुद्रणदोषथी मुक्त अने परिशिष्टोथी सज्ज छे. मुद्रण-बांधणी-कागळ उत्तम प्रकारना छे. - उपा. भुवनचन्द्र Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170