Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad

View full book text
Previous | Next

Page 135
________________ १२२ अनुसन्धान-५० वीटी कोट रह्या षट राय आकल-वाकल सह को थाय । ईधण पाणि जोईइ अन किम रहइ थीर लोकोनां मन ॥११(१२)।। कुभराय संकटमां पडइ धरि धीर्य साहामो नवी भडइ । लाजइ मुख देखाडउ नही ख्यत्रीनिं लया छइ अही ॥१२॥(१३)।। वाणिग वायदइ लया थाय दाता लज कुण भुख्यो जाय । पंडीत लाज ऊतर नवी थयो ख्यत्री लया न्हासी गयो ||१३|(१४)।। कुभराय शंकाणो जसइं मली बुधि वीमासइ तसई । पीता तणइ कहइ म करो खेद च्यता हवडा करस्यु छेद ॥१४॥(१५)।। दूत मोकलो विरी कनि आवे पूत्री देस्युं तनि । एक एक मानवी जाणइ जेम छइ तणइ कहइ वरीवो तेम ॥१५॥(१६)।। दूत मोकल्यो मन ओहोलासिं अ(आ)व्यो नृप विरीनिं पासि । का तुम्यो छाना आवज्यो मलीनिं परणी जाअज्यो ॥१६॥(१७)।। छड् तणइ छा एम कर्दा परणेवा मनडुं गहिगडं । को कोहोनिं न जणावइ वात राति छइ नगरम्हा जात ।।१७।(१८)। कुभरायनिं मलीआ त्यांहिं छइ नई घाल्या ओरडामाहिं । परभाति उंठइ नरभुप नरखइ मली प्रतिमारूप ॥१८(१९)।। देखी हरखइ हईआ मझारि एवं रूप नहीं संसारिं । नागकुमारी कइ क्यनरी वीद्याधरी कइ सूरसूदरी ॥१९।(२०)। ए कन्या वरसइ जो आज जाणुं पाम्यो त्रीभोवन राज । एम चीतवता सघला राय मली कुमरी परगट थाय ।।२०।(२१।। मलीरूप दीठु जेटलइ प्रतीमारूप घट्युं तेटलइ । हंसगति हीडइ काम्यनी चंदमुखी सुदर भाम्यनी ॥२१॥(२२)।। मृगनयणीनिं कुडल कानि चीत्रालकी नीलइ वानि । सोवनमेखला नेवर पाय देखी चकीत थया त्याहां राय ।।२२।(२३)।। ज्यारइ रागी हुआ घj ऊघाड्युं प्रतिमा ढाकणुं । दूरगंध गंधमाहिथी उंछलइ छइ राय तव पाछा टलइ ।।२३।(२४)। भोगी छइ सुगंधी सदा दूरगंध माहिं वशा नही कदा । अकलाणा दइ पाछा पाय मेलां एगठा सघलां राय ॥२४॥(२५)।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

Loading...

Page Navigation
1 ... 133 134 135 136 137 138 139 140 141 142 143 144 145 146 147 148 149 150 151 152 153 154 155 156 157 158 159 160 161 162 163 164 165 166 167 168 169 170