Book Title: Anusandhan 2009 12 SrNo 50
Author(s): Shilchandrasuri
Publisher: Kalikal Sarvagya Shri Hemchandracharya Navam Janmashatabdi Smruti Sanskar Shikshannidhi Ahmedabad
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१०६
अनुसन्धान-५०
वाडि(डी)खेत तणो परिहार, घर खडकीबध कलपइ च्यार, हाट पांच रूपुं मण एक, हेम सेर दस राखुं छेक ॥१६|| कुटि मोकली भणसइ च्यार, वली मोकली पांच वखारि, पांच फरत खांनां राखी(खि)यां, चोपद ते पणि [इहां] भाखी(खि)यां ॥१७|| गाय भूइंसनई बोकडी, पांच पांच अधकी आरवडी, पांच जोडि धुरंधर तणी, पांच दास-दासी तिम गणी ||१८|| जहवेर मुझ कलपइ बे सेर, करि संवर टालुं भवफेर, साकर खांड तेल घी गोल, मण ब-बे सई छाकाछोल ॥१९।। सेर अग्यार कपु(पू)र प्रमार(ण), कस्तुरी नव टांक वखाणि सुझइ सोपारी मण वीस, केसर कलपइं टांक च्यालीस ॥२०॥ पांच सेर हींगलो सिंदूर, वरस दिवस माहरइं भरपूर, साडला नई कपडा च्यालीस, वली कपासीआ भण पांचवीस ॥२१॥ गंधिआणुं भण कलपइ वीस, वणिज काजि मुझ वसु जगीस, पांच हजार रूपैया तणू ए सर्वमान वरस प्रति गणुं ॥२२॥ सजनादिक कारणि उपदसी ? जयणा सु(सू)क्षम मनि वसी, एणिपरि लीधुं व्रत पांचमुं, अतीचार टाली दुख दमुं ॥२३।।
ढाल - २ छठं दिसी(सि) परिमाण, व्रत हवइ आवरूं, चिहूं (हुं) दीसी (दिसि) गाऊ सोलसई ए ॥१॥ जलवट-थलवट मान, ए सवी(वि) जाणवू, जिहां वसुं तिहां थकी ए ॥२॥ ऊंचुं निचूं(नीचुं)बार, गाऊ जायQ कगल कासी(सि)दनी जयणा ए ॥३॥ व्रत सातमुं हवइ सार, रंगि आदरूं, मान भोग-उपभोगनुं ए ॥४॥ दिन प्रति सचित वीस, पांच विगय वली, साठि द्रव्य मुझ मोकलां ए ॥५॥
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